अनुभूति

16. 11. 2003

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

महानगर की कहानियां में
विनीता अग्रवाल की लघुकथा
पाषाण पिंड

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परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
बृजेशकुमार शुक्ला का आलेख
प्रिंसेज़ डायना की प्रतिकृति

और

मेलबर्न की महक 
के अंतर्गत
आस्ट्रेलिया की हिन्दी गतिविधियों को अभिव्यक्ति पर प्रस्तुत कर रहे हैं
हरिहर झा
साहित्य संध्या में

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धारावाहिक में 
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा का
इस पार से उस पार से का अगला भाग
असुरक्षा बोध बहुत
ख़तरनाक होता है

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कहानियों में
भारत से विनोद विप्लव की कहानी
फ़र्क़

साबुन के बारे में उसके पास एक और महत्वपूर्ण जानकारी यह थी कि उसे रगड़ने पर झाग निकलता है – उसी तरह का झाग जैसा नदी में बाढ़ आ जाने पर किनारे–किनारे जमा हो जाता है। शादी के बाद शहर में अपने मर्द के साथ रहकर मजदूरी करने वाली उसकी सखी ने बताया था कि शहर में औरतें शरीर और बालों में उजली मिट्टी नहीं, बल्कि साबुन लगाती हैं। साबुन लगाने से शरीर बिल्कुल साफ और मन तरोताजा हो जाता है। सभी मैल दूर हो जाते हैं। इसीलिए तो शहर की औरतें इतनी गोरी और सुंदर दिखती हैं।

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इस सप्ताह

कहानियों में
यू एस ए से सुषम बेदी की कहानी
संगीत पार्टी

अचला को खुद गाने का बहुत शौक था। कभी उसने सिनेतारिका बनने के सपने देखे थे अब सिनेमा के गानों से ही दिल बहला लेती थी। यूं गाती तो वह बहुत मामूली थी। बल्कि लगभग बेसुरा ही गाती पर इस महफिल में फिर भी उसे सुनने वाले मिल जाते जो यह भी कह देते कि "आज तो आपने पहले से बहुत अच्छा गाया है" और अचला को तसल्ली हो जाती कि वह अब बेहतर गाने लगी है और अगली पार्टी के लिये वह किसी न किसी नये गाने का खूब रियाज़ करती। उसने एक बिजली का बाज़ा खरीद रखा था जिसमें लगभग उन सभी पुराने फिल्मी गीतों की धुनें उसने भरवा रखी थी जिनको वह गाना जानती थी।

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सामयिकी में
14 नवंबर बाल दिवस के अवसर पर 
हेमंत शुक्ला का आलेख

बाल फिल्मों के प्रेरणास्रोत

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ललित निबंध में
गोविंद कुमार गुंजन का आलेख
एक फूल खिलना चाहता है

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हास्य व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का व्यंग्य लेख
मुफ्त को चंदन
घिस मेरे नंदन

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आज सिरहाने में
अमरीक सिंह दीप के विचार 
मैत्रेयी पुष्पा के उन्यास

कस्तूरी कुण्डल बसै
के विषय में

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सप्ताह का विचार
प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता
है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से
निराश नहीं हुआ है।
— रवीन्द्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में

देवास, भारत
से
नईम के 
14 हृदयस्पर्शी
गीत

दीपावली विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
कांसे का गिलास–सुधा अरोड़ा
चयनराम गुप्ता
दिये की लौ–शैल अग्रवाल
बीस फुट के बापूजी–एस आर हरनोट
उत्तरजीवितादिव्या माथुर
°

संस्मरण में सुप्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी की डायरी से दो चेहरे
°

कलादीर्घा में कला और कलाकार के अंतर्गत रसिक रावल से परिचय
उनके चित्रों के साथ
°

साक्षात्कार में
दिल्ली की जानी मानी फोटोग्राफर
सर्वेश के साथ बातचीत
तस्वीरें बोलती हैं
°

फुलवारी में पूर्णिमा वर्मन की कहानी
लाल गुब्बारा
और 'जंगल – के – पशु' लेखमाला के अंतर्गत जानकारी बाघ
°

सामयिकी में
दीपावली के अवसर पर
चंद्रशेखर का आलेख

सत्य का दीया तप का तेल
°

घर परिवार में
सुंदर घर के नये अंदाज़
रोशनी से कायाकल्प
°

प्रौद्योगिकी में
विजय कुमार मल्होत्रा से जानकारी
!सूचना प्रौद्योगिकी और!भारतीय भाषाएं (दूसरी किस्त)
°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत 
शैल अग्रवाल का आलेख
सात समुंदर पार

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
       सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला