अनुभूति

16. 7. 2005

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पिछले सप्ताह

मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
हाथरस में कविता की खेती

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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस
की छुट्टियां

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का बारहवां भाग
ग़जल के उपयुक्त उर्दू बहरें व समकक्ष हिंदी छंद–3

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रसोईघर में
पुलावों की सूची में नया व्यंजन
नवरतन पुलाव

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कहानियों में
भारत से संजीव की कहानी
ज्वार

 

मां अक्सर उन टोंगा' (मचानों) का जिक्र करती, जिन पर पानी से बचने के लिए पूरा परिवार बैठा होता। आम जामुन के साथ–साथ कभी–कभी 'सिलेट करवे' के कमला नींबू की याद करतीं जिनके सामने दार्जिलिंग और नागपुर के संतरे उन्हें फीके लगते। मछलियां तो मछलियां, कच्चू डांटा (अरबी की डंठल), मोचाई (केले के फूल), ओल (सूरन) की ऐसी उम्दा सब्जी बनातीं कि हमें पूछना पड़ता, 'मां तुमने इतनी बढ़िया तरकारी बनाना कहां से सीखा?' 'वहीं से, वहां की औरतों के बारे में कहावत है– जूते का तलवा भी रांध दें तो खाने वाले उंगलियां चाटते रह जाते।' सारा कुछ अच्छा ही अच्छा था तो आप लोग चले क्यों वहां से?' हम पूछते।
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इस सप्ताह

कहानियों में
यू एस ए से सुषम बेदी की कहानी
गुनहगार

सबको लगता है कि कहीं रत्ना उनके साथ न रहने लग जाए! पता नहीं कितना बड़ा मसला खड़ा हो जाएगा उनकी ज़िंदग़ियों में! रत्ना अब एक बहन या मां नहीं एक मसला थी– एक मुसीबत– एक समस्या– जिसका कोई हल नहीं था। यह भी कोई शाप था क्या? इतनी सी उम्र में पति चल बसे थे। अब बेटा दुनिया में होकर भी उससे दूर हो गया है! एक–एक करके सब का साथ छूटता गया। बस यहीं तक साथ होना था! अब बस अपना अकेलापन, अपने आप का बोझ, कितनों के बोझ ढोए? अब अपना बोझ ढोने के भी काबिल नहीं। कोई साथ चाहिए– बोझ ढोने में मदद करनेवाला! क्या ऐसा भी कभी होता है?

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हास्य व्यंग्य में
डा प्रेम जनमेजय का
प्रवासी से प्रेम

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का तेरहवां भाग
समायोजन विधि भाग–1

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सामयिकी में
प्रेमचंद जयंती के अवसर पर
डा जगदीश व्योम की जांच–पड़ताल
प्रेमचंद 'मुंशी' कैसे बने

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आज सिरहाने
कृष्णा सोबती का उपन्यास
समय सरगम

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सप्ताह का विचार
जि
स मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है।
— राम प्रताप त्रिपाठी

 

अनुभूति में

सुनील जोगी,
प्राण शर्मा, रमाकांत श्रीवास्तव, कृष्ण शलभ, नीलमेंदु कुमार और राय कूकणा की नयी कविताएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
फर्क–सूरज प्रकाश
मुक्ति–प्रत्यक्षा
शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है–उषा राजे सक्सेना
बदल जाती है ज़िन्दग़ी–अर्चना पेन्यूली
बस कब चलेगी–संजय विद्रोही
लॉटरी–राकेश त्यागी
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हास्य व्यंग्य में
बहुसंख्यक होने का अर्थडा नरेन्द्र कोहली
हे निंदनीय व्यक्तित्व–अशोक स्वतंत्र 
सांस्कृतिक विरासत–अगस्त्य कोहली
मुक्त मुक्त का दौर–डा नवीन चंद्र लोहनी

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दृष्टिकोण में
डा रति सक्सेना की कलम से
भावना को भुनाने की कला

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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में वर्ग पहेली
भेड़िया आया भेड़िया आया

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव के सहयोग से
लिनक्स आया हिंदी में

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प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग द्वारा नवीनतम जानकारी
वर्षा के पानी का संरक्षण

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सामयिकी में कबीर जयंती
के अवसर पर डा प्रेम जनमेजय का नाटक देखौ कर्म कबीर का

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ललित निबंध में
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग्रीष्म के शीतल मनोरंजन

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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