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१६. ११. २००९

सप्ताह का विचार-  लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। -हितोपदेश

अनुभूति में-
केदारनाथ अग्रवाल, नीरज शुक्ला, जगत प्रकाश चतुर्वेदी, सुरेन्द्र सिंघल और कश्मीर सिंह की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- भाषाओं की वैज्ञानिकता की जाँच आमतौर से भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से होती है। उनके इतिहास, रचना और विकास को... आगे पढ़ें

समयिकी में- मधु कौड़ा प्रकरण की छानबीन करते हुए पत्रकार ओमकार चौधरी का आलेख- भ्रष्टाचार पर निर्णायक चोट ज़रूरी

रसोई सुझाव- दोसे के घोल में एक चम्मच चीनी मिला देने से दोसे अधिक कुरकुरे,  गहरे सुनहरे और ज्यादा स्वादिष्ट बनते हैं ।

पुनर्पाठ में - १६ मई २००१ को पर्यटन के अंतर्गत प्रकाशित दीपिका जोशी का आलेख- सिंगापुर, बैंकाक और पटाया का त्रिकोण

क्या आप जानते हैं? कि आयुर्वेद मानव जाति का पहला चिकित्सा विज्ञान माना जाता है इसका आविष्कार भारत में २५०० वर्ष पूर्व महर्षि चरक ने किया था।

शुक्रवार चौपाल- आज की चौपाल में तीन अनूदित कहानियों के पाठ का कार्यक्रम था। साहित्य पाठ में रुचि रखनेवाले सदस्य कम ही हैं।... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- जारी है कार्यशाला-५ में दीपावली पर आधारित गीतों का प्रकाशन। सभी रचनाकार पाठकों की प्रतिक्रया की प्रतीक्षा में हैं।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से भालचंद्र जोशी की कहानी कहीं भी अँधेरा

मैंने बहुत सावधानी से चारों ओर देखा लेकिन मेरे सिवा वहाँ कोई नहीं था। मुझे तसल्ली हुई, जिसका कि कोई कारण नहीं था। चारों ओर घने और बड़े-बडे पेड़, मुझे अजीब-सा लगा। मैंने हाथ बढ़ाकर एक पेड़ को धीरे से सरकाया तो सहसा पीछे से एक दूसरा ही दृश्य सामने आ गया। दूर-दूर तक पहाडियाँ और उन पर कहीं घास तो कहीं चट्टानें उगी थीं। मुझे उस बात का आभास नहीं हुआ कि यहाँ कहीं कोई है। सहसा एक चट्टान के पीछे से वह बाहर निकली और मेरी ओर बढ़ने लगी। मैं घास के एक छोटे से टुकड़े के सहारे लेट गया। वह अचानक दिखाई देना बंद हो गई। मैं खड़ा हुआ तो वह फिर नज़र आई। अब वह मेरे नज़दीक थी। मुस्करा भी रही थी। उसकी मुस्कान में किंचित कौतुहल था या मेरे साथ होने का पुलक, मैं ठीक से यह समझ पाता, उसके पहले ही उसने मुस्कान समेट ली। मुझे थोड़ा अचरज हुआ कल अस्पताल में उसका चेहरा बहुत डरा हुआ और हल्का लग रहा था। पूरी कहानी पढ़ें...
*

हरिशंकर परसाईं का व्यंग्य
एक मध्यवर्गीय कुत्ता
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का चौथा भाग

*11

संस्कृति में कनीज भट्टी का लेख
रूप का रखवाला घूँघट
*

धर्मवीर भारती का संस्मरण-
जब मैंने पहली निजी पुस्तक खरीदी

1

पिछले सप्ताह-
 

अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
भिखारियों से भेदभाव क्यों

*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का तीसरा भाग
*

आज सिरहाने उषा वर्मा द्वारा संपादित
प्रवास में पहली कहानी
*

फुलवारी में कस्तूरी मृग के विषय में
जानकारी, शिशु गीत और शिल्प

*

कथा महोत्सव में पुरस्कृत
मनमोहन भाटिया की कहानी शिक्षा

मुख्य राजमार्ग से कटती एक संकरी सड़क आठ किलोमीटर के बाद नहर पर समाप्त हो जाती है। नहर पार जाने के लिए कच्चा पुल एकमात्र साधन है। जब नहर में अधिक पानी छोड़ा जाता है, तब पुल टूट जाता है और नाव से नहर पार जाया जाता है। अस्थायी पुल जिसे नहर पार के गाँव निवासी खुद बनाते है, बरसात के महीनों में और अधिक पानी के आ जाने पर टूट जाता है। सरकार ने कभी पुल को पक्का करने की नहीं सोची। नहर के पार गाँवों में गरीब परिवारों की संख्या अधिक है। आधे छोटे खेतों में फसल बो कर गुज़ारा करने वाले हैं और आधे दूध बेचने का काम करते हैं। गाय, भैंसें पाल रखी हैं, जिनका दूध वे मुख्य राजमार्ग पर बसे शहर में बेचने जाते हैं। शिक्षा से गाँव वालों का दूर-दूर तक को वास्ता नहीं है। ऐसा लगता था, कि नहर पार आधुनिक सभ्यता ने अपने पैर अभी तक नहीं रखे हैं। पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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