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११. १. २०१०

सप्ताह का विचार- जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते। -- विवेकानंद

अनुभूति में- जयजय राम आनंद, शरद तैलंग, दुर्गेश राज और प्रेम सहजवाला की रचनाओं के साथ सर्दी का संकलन गाँव में अलाव।

कलम गहौं नहिं हाथ- कजरारी आँखों की दुनिया कायल है उस पर अरबी सुरमे में डूबी धुआँ धुआँ आँखों का जवाब नहीं उस पर भी...आगे पढ़ें

सामयिकी में- गुजरात विधानसभा के अनिवार्य मतदान विधेयक के विषय में वेद प्रताप वैदिक का आलेख- अनिवार्य मतदान है लोकशक्ति का शंखनाद

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - बालों से रूसी दूर कर उन्हें चमकदार बनाने के लिए १ नीबू का रस बालों में माँग बनाकर लगाएँ और दस मिनट बाद धो दें।

पुनर्पाठ में- १ जुलाई २००१ के अंक में विशिष्ट कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा के अंतर्गत प्रकाशित भगवती चरण वर्मा की कहानी- आवारे

क्या आप जानते हैं? कि बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।

शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार ८ जनवरी को चौपाल में एक लेखन प्रतियोगिता की घोषणा- जिसमें अभिव्यक्ति के लेखक/पाठक भी भाग ले सकते हैं। ... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-६ में घोषित कुहासा या कोहरा विषय पर रोज़ एक गीत का प्रकाशन जारी है पाठकों की प्रतिक्रिया का स्वागत  है।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी एक भीगती हुई शाम

महालक्ष्मी रेलवे स्टेशन
चर्चगेट जाने वाली लोकल महालक्ष्मी स्टेशन पर रुकी। लेडीज कम्पार्टमेन्ट से ढेर सारी महिलाओं के रेले के साथ वह भी बारिश से भीगते हुए प्लेटफार्म पर उतरी। आज सुबह से बारिश हो रही थी लेकिन बारिश की वजह से मुम्बई की जिन्दगी थम नहीं जाती। उतरने के साथ ही वह रेसकोर्स की ओर जाने वाले गेट की ओर चल पड़ी। आज उसने साड़ी पहनी थी। जब भी वह विदित के साथ जाती है तो अधिकतर साड़ी पहनती है क्योंकि विदित को वह साड़ी में बहुत अच्छी लगती है हालाँकि नियमित रूप से साड़ी न पहनने के कारण उसे उलझन महसूस होती है पर ग्राहक ग्राहक है, उसके मन मुताबिक तो करना ही पड़ता है फिर वह बिल्कुल अलग किस्म का ग्राहक है। तभी उसके पर्स में रखा उसका मोबाइल फोन थरथराया। उसके चेहरे पर मुस्कराहट खेल गई। उसे विदित का अधीर चेहरा याद आया। वह स्टेशन के बाहर उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। पूरी कहानी  पढ़ें...
*

प्रमोद ताम्बट का व्यंग्य
यह साम्राज्यवादी थपथपाहट

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लक्ष्मीकांत नारायण के साथ चलें
भारत कला भवन

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आर के श्रीनिवासन की रपट
जब शौच से उपजे सोना

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कुँवरपाल सिंह का संस्मरण
मेरी यादों के पयाले में भरो फिर कोई मय

पिछले सप्ताह

दिनेश थपलियाल का व्यंग्य
किस्सा कहावतों का

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तेजेन्द्र शर्मा के साथ मोहन राणा की बातचीत
जीवन अगर कहानी है तो कहानी क्या है?

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डॉ. पवन अग्रवाल का आलेख
लखनऊ विश्वविद्यालय

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पर्व परिचय में में
वर्ष २०१० के पर्वों की सूचना पर्व पंचांग में

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी फन्दा

उसका का दिल आज बेचैन है, किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा, तबीयत बहुत उखड़ी हुई और भीतर जैसे कुछ टूटता-सा महसूस हो रहा है। सुबह के पाठ में भी मन नहीं रमा। चित्त स्थिर नहीं हो पा रहा था, भीतर-बाहर की घुटन जब बढ़ गई, तो वह अपने बिस्तर से उठ गया। कमरे की खिड़की खोली, ताज़ी हवा का झोंका आया, पर अस्थिरता बढ़ती गई। वह कमरे में ठहर नहीं सका। बाहर दलान में आ गया। उजाला दबे पाँव फैलने की कोशिश कर रहा था। धुंधली रौशनी में वह अपनी नवार की मंजी देखने लगा। जिसे उसने बड़े शौक से पंजाब से मँगवाया था। वह खेत के एक कोने में पड़ी थी। घुसपुसे में सँभल-सँभल कर पाँव रखता, राह को टोह -टोह कर चलता, वह चारपाई तक पहुँच गया, धम्म से उस पर बैठ गया, जैसे मानों बोझ ढोह कर लाया हो और चारपाई पर पटका हो। पूरी कहानी  पढ़ें...

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