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११. ४. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
जानकीवल्लभ शास्त्री, मनोज श्रीवास्तव, निर्मल गुप्त, सुभाष नीरव और श्वेता गोस्वामी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- मलगापुड़ी

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का पंद्रहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से - कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण सुपारी से

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- अप्रैल से १५ अप्रैल २०११ तक का भविष्य फल

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- किसी भी ब्राऊज़र में- काम करते समय एक से ज्यादा टैब खुले होने पर Ctrl+F4 दबाने पर वर्तमान टैब ...

नवगीत की पाठशाला में- समाचार विषय पर आधारित नवगीतों का प्रकाशन जारी है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं।

वर्ग पहेली-०२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह कार्यक्रम था उर्दू की कहानियाँ पढ़ने का। इसके साथ ही प्रेमचंद की कहानी बड़े भाई साहब के एक और... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी- एक बार फिर

दिन धीरे धीरे बीतते चले जा रहे हैं, सपनों का पानी बिलकुल ही खतम हो चुका है, जीवन की पुरानी मदमस्त चाल अब बेढंगी हो चली है। वह आवाज कहीं दूर जा कर लुप्त हो गई है, जिसकी प्रतिध्वनि पर मुझे ताउम्र चलना था।
पढ़ते-पढ़ते अचानक जब मन तेज रफ्तार से भागने लगा तो आँखों में आँसू की लम्बी धारा बह निकली। चश्मा उतारकर मैंने मेज पर रख दिया और अपनी पीठ कुर्सी पर टिका दी। मन बिना थके लगातार भागता ही चला जा रहा था, गुजरी हुई उन गलियों की दिशा में जहाँ की हरी- भरी गलियों में चारों ओर सब कुछ हरा भरा था। पर वह हरियाली स्थिर नहीं रही वह थोड़े ही समय के बाद पीली होती चली गई। एक गहरी कालिमा ने अरुण को मुझसे बहुत दूर कर दिया। मैं अरुण के पदचिह्न तलाशते-तलाशते बहुत दूर तक चलती चली गई, पर अरुण तो न जाने किन अनजानी परछाइयों का पीछा करते-करते गुमशुदगी की सीढियाँ उतर कर कहीं चला गया है। पूरी कहानी पढ़ें...

*

यशवंत कोठारी का व्यंग्य
क्रिकेट ऋतुसंहार
*

डॉ. रामकुमार सिंह का निबंध
सूर के राम

*

देवेन्द्र चौबे का लेख
मुक्तछंद के प्रथम कवि- महेश नारायण

*

भारतेंदु मिश्र की भावभीनी श्रद्धांजलि
छंदप्रसंग के आदर्श: आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री

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पिछले सप्ताह-


आकुल की लघुकथा
चवन्नी नहीं चली
*

प्रभात रंजन की कलम से
फैंटम हुआ पचहत्तर का

*

गिरीश पंकज का लेख
अज्ञेय की कविता- नई दृष्टि, नए बिंब, नए इंद्रधनुष
*

डा. सच्चिदानंद झा की चेतावनी
सावधान मौसम बदल रहे हैं

*

समकालीन कहानियों में भारत से
विपिन चौधरी की कहानी धुँधली सी आस

दिन धीरे धीरे बीतते चले जा रहे हैं, सपनों का पानी बिलकुल ही खतम हो चुका है, जीवन की पुरानी मदमस्त चाल अब बेढंगी हो चली है। वह आवाज कहीं दूर जा कर लुप्त हो गई है, जिसकी प्रतिध्वनि पर मुझे ताउम्र चलना था।
पढ़ते-पढ़ते अचानक जब मन तेज रफ्तार से भागने लगा तो आँखों में आँसू की लम्बी धारा बह निकली। चश्मा उतारकर मैंने मेज पर रख दिया और अपनी पीठ कुर्सी पर टिका दी। मन बिना थके लगातार भागता ही चला जा रहा था, गुजरी हुई उन गलियों की दिशा में जहाँ की हरी- भरी गलियों में चारों ओर सब कुछ हरा भरा था। पर वह हरियाली स्थिर नहीं रही वह थोड़े ही समय के बाद पीली होती चली गई। एक गहरी कालिमा ने अरुण को मुझसे बहुत दूर कर दिया। मैं अरुण के पदचिह्न तलाशते-तलाशते बहुत दूर तक चलती चली गई, पर... पूरी कहानी पढ़ें...
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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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