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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश // पता-


१६. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
डॉ. सुरेश, सुधीर कुशवाह, कृष्ण कन्हैया, प्रो। विशवंभर शुक्ला और ज्ञानेन्द्रपति की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से राजस्थानी व्यंजनों की शृंखला में- वेज जयपुरी।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल-का-शिशु- माता-पिता-में-से-एक-को-वरीयता

बागबानी में- बगीचे की देखभाल के लिये टीम अभिव्यक्ति के अनुभवजन्य अनमोल सुझाव- इस अंक में- लॉन के लिये घास का चुनाव

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ जुलाई से ३१ जुलाई २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ - 'गर्मी के दिन' के लिये आमंत्रित नवगीतों पर समीक्षा प्रकाशित होने के साथ ही नए विषय की घोषणा कर देंगे।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- ९ अप्रैल २००३ को प्रकाशित भारत से आस्था की कहानी- मोहभंग

वर्ग पहेली-०९०
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से
विनीत गर्ग की कहानी काली परी

कपड़े एकदम बराबर हों, बाँये पैर की चप्पल बाँये पैर में हो, दाँये पैर की चप्पल दाँये पैर में हो, दोनों चप्पलें एक ही जोड़ी की हों, बाल सुखाने के लिये इस्तेमाल हुआ तौलिया भी गलती से सर पर ही बँधा ना रह गया हो और कुल-मिला कर आपका सब कुछ वैसा ही हो जैसा अक्सर, आमतौर पर होता हो और फिर भी आप आस-पास मौजूद लोगों के लिये दिलचस्पी की वजह बने हुयें हों तो समझ जाइये कि या तो आप बेहद खूबसूरत हैं या निहायती बदसूरत। काजल को पता था कि वो कितनी बदसूरत है, इसीलिये मेरठ के बीचोंबीच स्थित सिटी हार्ट रैस्टोरेंट के कोने की टेबल पर बैठी काजल के लिये लोगों की ये दिलचस्पी कोई नई चीज नहीं थी। कुछ लोग आश्चर्य से देख रहे थे, कुछ दया से, कुछ नफरत से, कुछ असमंजस से, कुछ घृणा से, कुछ तरस से, कुछ इसलिये देख रहे थे कि बाकी लोग देख रहे थे पर देख सब रहे थे; और कोने में भी केंद्र बनी हुई काजल इन घूरती नज़रों से नज़र चुराकर कभी तो मैन्यू पढ़ने का नाटक करने लग जाती और... विस्तार से पढ़ें
*

शशिकांत गीते का व्यंग्य
यह चोरी नहीं प्रेम है भाई
*

ज्योततिर्मयी पंत से जानकारी
उत्तराखंड का आंचलिक पर्व-हरेला

*

अलका दर्शन श्रीवास्तव का आलेख
पद्मश्री डॉ मोटूरि सत्यनारायण


*

पुनर्पाठ में नीरज त्रिपाठी का नगरनामा
बिरयानी की खुशबू में डूबा हैदराबाद

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पिछले सप्ताह-


डॉ. सरस्वती माथुर की
लघुकथा- माँ की आँखें
*

अनिल प्रभा कुमार के कहानी संग्रह
बहता पानी से परिचय

*

अवनीश चौहान की श्रद्धांजलि
समृतिशेष दिनेश सिंह


*

पुनर्पाठ में अचला शर्मा का आलेख
रेडियो नाटक का पुनर्जन्म

*

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
अनिलप्रभा कुमार की कहानी बहता पानी

मालूम था उसे कि इस बार कुछ बदला हुआ ज़रूर होगा। मायका होगा, माँ नहीं होगी। पीहर होगा, पिता नहीं होंगे। भाई के घर जा रही है। भाभी होगी, भतीजी ससुराल में होगी। कैसा लगेगा? इस प्रश्न के ऊपर उसने दरवाज़े भिड़ा दिये थे। एक दर्शक की तरह तैयार थी भावी का चलचित्र देखने के लिए। हवाई-अड्डे से बाहर निकलते ही एक रुलाई सी दिल पर से गुज़र गई। क्या इस बार उसे लेने कोई भी नहीं आया? भीड़ में ढूँढती रही अपनों के चेहरे। भीतर- बाहर सब देख कर जब फ़ोन की तरफ़ बढ़ रही थी तो भाई दिख गया। उसका छोटा भाई, जिसके साथ लाड़ का कम और लड़ने- डाँटने का रिश्ता ज़्यादा था।
"मैं तो तुम्हें अन्दर ढूँढ रहा था।"
"मैंने समझा शायद तुम बाहर होगे।"
भाई ने सूटकेसों से भरी ट्रॉली का हत्था अपने हाथ में ले लिया और आगे बढ़ गया। हमेशा ऐसे ही वह उससे मिलता है। विस्तार से पढ़ें

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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