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१० . ११. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
ब्रजेश नीरज, चंद्रभान भारद्वाज, सतीश जायसवाल, सौरभ पांडेय और राजेन्द्र तिवारी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं स्वास्थ्यवर्धक सूपों की शृंखला में गर्मागरम- सब सब्जी सूप

गपशप के अंतर्गत- घर की सजावट मे रंगों का विशेष महत्व है मन की मधुरता में भी रंग रस घोलते हैं तो चलें दीपिका जोशी के साथ- रंगों से बदलें दुनिया

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - ७. अच्छी नींद लें

सप्ताह का विचार- लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। -हितोपदेश

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (१० नवंबर को) अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन, काँग्रेस नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, सत्यसमाज के गुरू स्वामी सत्यभक्त... विस्तार से

लोकप्रिय लघुकथाओं के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- ९ नवंबर २००२ को प्रकाशित भारत से सूरज प्रकाश की लघुकथा- संतुलन

वर्ग पहेली-२१०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 डॉ नरेन्द्र शुक्ला की कहानी- सजा

तुम्हारा नाम क्या है? कटघरे में खड़े खूंखार से दिखने वाले मुज़रिम से सफाई वकील ने पूछा।
विक्की उस्ताद। मुज़रिम ने होंठ चबाते हुये कहा।
तो तुमने कलक्टर साहिबा पर गोली चलाई?
हाँ, चलाई गोली। विक्की उस्ताद ने सीना तानकर कहा।
मगर क्यों? सफाई वकील ने पूछा।
विक्की जज साहिबा को देख रहा था। कोई जवाब नहीं दिया।
मैं पूछता हूँ कि तुमने कलक्टर साहिबा पर गाली क्यों चलाई? इस बार वकील साहब ने थोड़ी सख़्ती दिखाई।
पैसा मिला था। विक्की ने बिना किसी लाग-लपेट के सहज ही कह दिया।
किसने दिया पैसा? वकील साहब ने अगला सवाल किया।
उसने कोई उत्तर नहीं दिया। वह लगातार जज साहिबा को देखे जा रहा था। शायद कुछ पहचानने की कोशिश कर रहा था।
मैं पूछता हूँ कि किसने दिया पैसा? सफाई वकील के स्वर कठोर हो गये। आगे-
*

जयंत साहा का व्यंग्य
गब्बर सिंह से एक मुलाकात
*

विद्यानिवास मिश्र का ललित निबंध
हरसिंगार
*

मधु चाँदना के साथ पर्यटन
कुमायूँ की काशी- जागेश्वर

*

पुनर्पाठ में डॉ गुरुदयाल प्रदीप की
विज्ञानवार्ता- डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग

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पिछले सप्ताह-

राहुल देव की लघुकथा
जलेबी
*

मालती शर्मा से संस्कृति में
गौ, गोवर्धन, जीवन धन- गोबर संस्कृति की सार्थकता
*

डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
अनन्नास के अनोखे लाभ

*

पुनर्पाठ में कनीज भट्टी का आलेख
रूप का रखवाला घूँघट
*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 दिव्य विजयवर्गीय की कहानी- सूखे फूल

वो मेरे ऐन सामने आ खड़ी हुई थी कुछ दिन पहले सुबह सुबह उसका फोन आया था कि कुछ रोज़ बाद वो मेरे शहर आ रही है क्या मैं उस से मिलना पसंद करूँगी? और मेरे मुँह से हाँ निकल गया था बाद में कितनी बार सोचा कि मना कर दूँ कुछ भी बहाना बना दूँगी कहीं बाहर जाना है या मेहमान आ गए हैं या सीधे ही कह दूँ नहीं मिलना चाहती पर शायद मैं खुद भी उसे देखना चाहती थी जिस दिन से सुना वो आ रही है मुझे कुछ होता रहा आने से एक दिन पहले उसका फोन फिर आया था उसी ने कहा था कि वो घर पर नहीं कहीं बाहर मिलना चाहती है हो सके तो किसी गार्डन में और मैं फिर हाँ कह बैठी थी मुझे खुद के ऊपर क्रोध भी आया कि क्यों मैं उसकी हर बात माने जा रही हूँ पर अब तो निर्णय ले लिया गया था मैं पार्क के गेट के आस पास चक्कर काट रही थी यही तय पाया गया था कि ठीक एक बजे हम उद्यान के प्रवेश द्वार पर मिलेंगे और अब एक बजकर बीस मिनट होने को आये थे, कैसी लापरवाही है क्या उसे फोन करूँ? आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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