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८. १२. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
ओम धीरज, सुधेश, मनोरंजन तिवारी, आचार्य संजीव सलिल और डॉ. मनोज सोनकर की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं हर मौसम और हर अवसर पर सदा बहार- छोटी बालूशाही

गपशप के अंतर्गत--छुट्टियाँ आने ही वाली हैं बहुत से लोग यात्रा करेंगे। आइये जानें कुछ उपयोगी सुझाव अर्बुदा ओहरी से- यात्रा की तैयारी

जीवन शैली में- १५ आसान सुझाव जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकते हैं - ११. कुछ न कुछ सीखने की आदत डालें

सप्ताह का विचार- कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (८ दिसंबर को) १८९७ में साहित्यकार एवं वक्ता बालकृष्ण शर्मा नवीन, १९३५ में अभिनेता धर्मेन्द्र और... विस्तार से

लोकप्रिय लघुकथाओं के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- ९ नवंबर २००३ को प्रकाशित विनीता अग्रवाल की लघुकथा- पाषाण पिंड

वर्ग पहेली-२१४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.के. से
 कादंबरी मेहरा की कहानी- टैटू

लन्दन की सुप्रसिद्ध हार्ले स्ट्रीट का एक लेज़र क्लीनिक। त्वचा के दाग धब्बे मिटाने का केंद्र। स्त्रियों के लिए वरदान। इसी के मालिक विख्यात डॉक्टर अनिल गर्ग। पाँच फुट सात इंच कद। सात्विक सही आहार के परिणाम से बेहद सूती हुई काया। गोरा गुलाबीपन लिए हुआ रंग। आँखों पर मोटा चश्मा और गंजा सिर। भाषा सुथरी अंग्रेजी, मीठा स्वर और शाश्वत मुस्कान। पर इन सबसे ज्यादा उनकी कर्मठता के कारण उन्हीं की माँग रहती मरीजों को।
उनकी सेक्रेटरी शीला हो या उनकी अनुभवी नर्स जॉयस, वर्षों से उनको छोड़कर कहीं नहीं जातीं।
एक सुबह की बात शीला ज़रा घबराई हुई अंदर आई।
''डॉ-गर्ग-एक-फनी-सा आदमी आपसे मिलना चाहता है।''
''फनी माने क्या? ''
''गुंडा-या-पागल-भी-हो-सकता-है।-बहुत-बड़ा-तगड़ा-सा-है।''
''भेज दो। उसकी कद काठी से डरो मत। ''
आगंतुक सचमुच साढ़े छह फुट ऊँचा और करीब बीस स्टोन वज़न का पहलवान जैसा था। बिना किसी औपचारिकता के कुर्सी खींचकर डॉ गर्ग के सामने बैठ गया। कुर्सी उसके हिसाब से बहुत छोटी थी अतः दोनों टाँगें उसे पसारनी पड़ीं। ... आगे-
*

रत्ना ठाकुर की लघुकथा
सुंदरता
*

स्वाद और स्वास्थ्य में जानें
अमृतफल अमरूद के विषय में
*

राधेश्याम  का आलेख
विश्व का पहला प्रामाणिक सामाजिक उपन्यास ‘गेंजी’

*

पुनर्पाठ में डॉ. इंद्रजित सिंह
का संस्मरण-
गीतों का जादूगर शैलेन्द्र

पिछले सप्ताह-

रघुविन्द्र यादव की लघुकथा
माँ की खुशी
*

मोइनुद्दीन चिश्ती का आलेख
जोधपुर की जूतियाँ
*

हृदयनारायण दीक्षित का दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति प्रकट करती है संस्कृत

*

पुनर्पाठ में डॉ गुरुदयाल प्रदीप लाए हैं
गरमा-गरम चाय की प्याली आप के स्वास्थ्य के नाम

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 वल्लभ डोभाल की कहानी- नुक्कड़ नाटक

वर्षों नौकरी तलाशने पर जब निराशा ही हाथ लगी तो वह समझ गया कि पढ़ने-लिखने का मतलब सिर्फ नौकरी नहीं, अपना कोई भी धंधा शुरू किया जा सकता है। सोचकर उसने काम चालू कर दिया। काम कोई हो, मतलब पैसा निकालने से है। चल पड़े तो पैसा ही पैसा...! शुरूआती दौर में जो दिक्कतें पेश आती हैं, उनका सामना उसे भी करना पड़ा। तब पहली बार एक बूढ़े आदमी ने रू-ब-रू खड़े होकर उसे डपट दिया था- "एक जवान आदमी इतना हट्टा-कट्टा होकर भीख माँगता फिरे, शर्म आनी चाहिए! मेहनत-मजूरी क्यों नहीं कर लेता?" बूढ़े आदमी की नसीहत उसने सुन ली और चुपचाप बर्दाश्त कर गया। चाहता तो वहीं मुँहतोड़ जवाब देता कि- ‘माँगना कम मेहनत-मजूरी का काम नहीं। सर्दी-गर्मी में दिन-भर घूमते जान आधी रह जाती है, फिर माँगता कौन नहीं! फर्क इतना है कि मैं तुम लोगों से माँग रहा हूँ और तुम मंदिर-मस्जिदों में जाकर माथा टेकते हो! भीख तो सभी माँगते हैं। कोई धन-दौलत माँगता है, कोई औलाद के लिए तरस रहा है... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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