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 १६. ३. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1पंकज परिमल, धीरेन्द्र कुमार सिंह सज्जन, पंकज त्रिवेदी, राजेन्द्र सारथी और संगीता मनराल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं पेय की विशेष शृंखला में- संतरे के रस की - वसंत माधुरी

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं- ७- पौधों को खरीदने से पहले

जीवन शैली में- कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये सहायक हो सकते हैं- १०- नियमित व्यायाम मनोरंजन का साधन

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ६- विपरीत रंग और चटक छींट का सौंदर्य

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (९ मार्च को) अंबिका प्रसाद दिव्य, इफ्तेखार अली खाँ पटौदी, सलमा सुल्तान, अनन्या खरे। ... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- श्रीकृष्ण शर्मा की कलम से निर्मल शुक्ल के नवगीत संग्रह- अब तक रही कुँवारी धूप का परिचय।

वर्ग पहेली- २२८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- होली के अवसर पर

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी- साहिब है रंगरेज

किस्सा उस समय का है जब शहर ने अँगड़ाई नहीं ली थी। बस अपने में सकुचाया और सिमटा हुआ रहता था। ठण्डी सड़कों में जगह जगह झरने बहते, जहाँ स्कूली बच्चे और राहगीर अंजुली भर भर पानी पीते। मुख्य बाजार में बहुत कम आदमी नजर आते। गर्मियों में गिने चुने लोग मैदानों से आते जिन्हें सैलानी नहीं कहा जाता था। कुछ मेमें छाता लिए रिक्शे पर बैठी नजर आतीं। इन रिक्शों को आदमी दौड़ते हुए चलाते थे। सर्दियों में तो वीराना छा जाता। माल रोड़ पर कोई भलामानुष नजर नहीं आता। मॉल रोड पर तो बीच से सड़क साफ कर रास्ता बना दिया जाता, लोअर बाजार में दुकानें बर्फ से अटी रहतीं। स्कूल कॉलेज बंद। वैसे भी ले दे कर लड़कियों का एक सरकारी स्कूल, लड़कों का डी.ए.वी. स्कूल और एक प्राईवेट कॉलेज था। दो चार कांवेंट स्कूल थे, जो संभ्रांत परिवारों की तरह अपने में ही रहते। इन में ऐसे बच्चे रहते जिनके माता पिता के पास उन के लिए समय नहीं था। सर्दियों की छुट्टियों में होस्टल भी ख़ाली हो जाते। आगे-
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दिनेश का व्यंग्य
चमचा चिंतन
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डॉ. दीपक आचार्य का आलेख
प्रकृति का उपहार बहूपयोगी लक्ष्मी तरु
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यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’ से जानें
शिशुनाग शशांक: इतिहास के दर्पण में 

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पुनर्पाठ में निर्मल वर्मा की
डायरी के अंश- हवा में वसंत

पिछले सप्ताह-

प्रेरक प्रसंग
बंदरों का मनोविज्ञान
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देवी नागरानी की कलम से
रचनाकार राधेश्याम शुक्ल
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अम्बरीष श्रीवास्तव का आलेख
कहानी बाँसुरी की 

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पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद सिंह का आलेख
भोजपुरी साहित्य में नीम आम और जामुन

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.एस.ए. से
सुषम बेदी की कहानी- कितने कितने अतीत

इधर कुछ दिनों से कौशल्या बस एक ही शिकायत करती थकती न थी। हर किसी से वही कहानी दुहरायी जाती। पहले तो निजी परिचारिका से कहा- हाय हाय मुझसे नहीं देखा जाता वह आदमी। मेरी टेबल पर ही बिठा दिया है उसको। हर वक्त नाक बहती रहती है, मुँह से लार टपकती रहती है और वह मुँह में खाना डालता रहता है। न नाक साफ करता है न लार। खाने के साथ लार भी... छिछि, घिन होती है मुझे। मैं नहीं बैठ सकती उस मेज पर। परिचारिका बोली-तो क्या हुआ? तुमको तो कुछ नहीं कहता। अपना चुपचाप खाता रहता है। और जो नाक गिरती रहती है खाने में? तो क्या मुझको फरक नहीं पड़ता। मुझसे नहीं देखा जाता। उल्टी आती है उसे देखकर। कम से कम नाक5 तो साफ कर ले। खाने के साथ साथ नाक भी निगलता जाता है। कोई उसको कुछ कहता क्यों नहीं?
मिस शर्मा। मार्क (यही उसका नाम था) बेचारे को अपना तो होश नहीं। वह क्या करेगा नाक साफ। कोई नर्स तो पीछे पीछे घूम नहीं सकती... आगे-

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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