अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार // हमारे लेखक
तुक कोश // शब्दकोश // पता-

लेखकों से
 १. १२. २०१८

इस माह-

अनुभूति में-
गीतों में संध्या सिंह, अंजुमन में राजेन्द्र वर्मा, छंदमुक्त में रोली शंकर और माहिया में निशा कोठारी की रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह वर्ष का अंतिम उत्सव मनाते हुए हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं - शाही फिरनी

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के उपाय- २७- मस्तिष्क के लिये मछली

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- १२- राशियों और नक्षत्रों के वृक्ष

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं-  १२- सीमावर्ती गाँव लुंगवा।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (दिसंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- आचार्य संजीव सलिल की कलम से विजय बागरी के नवगीत संग्रह- ''ओझल रहे उजाले'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३०८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

साहित्य संगम में मोहन कल्पना की सिंधी कहानी का
रूपांतर- झलक, रूपांतरकार हैं देवी नांगरानी

सर्दियों की सर्द रात थी। हम शिव मंदिर के पास पीपल के पेड़ के नीचे बैठे थे। हम दोनों में से किसी ने भी कुछ बात नहीं की। हवा पीपल के पत्तों को छू रही थी। पीपल चाँदनी को चूम रहा था और मैं सिंधू की ओर देख रहा था जिसमें सितारों की रोशनी भरी हुई थी।
अचानक दोनों उठकर खड़े हो गए। ठंडी ने अपना असर दिखाना शुरू किया था।
उसने मेरे क़रीब आकर कोट की जेब में हाथ डाला। हाथ आर-पार निकल आया। जेब फटा हुआ था। सिंधू को पता न था कि वह कोट मेरा नहीं बल्कि मेरे दादा का था, जिसने मेरे पिता को दिया था और उसी रात यह मुझे मिला।
‘ये क्या?’
‘जैसी मेरी ज़िन्दगी।’
‘क्या बोल रहे हो?’
‘मध्यम श्रेणी का आदमी हूँ न।’
उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया। आहिस्ता से कहा - ‘फिर तुम नौकरी क्यों नहीं ढूँढ़ते?’
‘नौकरी के लिये मारा-मारा भटकता तो हूँ।’ आगे...

*

भावना सक्सेना की
लघुकथा- अच्छा समय
*

कुमार रवीन्द्र से रचना प्रसंग में-
हरियाणा में नवगीत- दशा और दिशा
*

शशांक दुबे से फिल्म इल्म में-
संगीतकार चित्रगुप्त 
*

पुनर्पाठ में गुणाकर मुले का आलेख
भारतीय कैलेंडर की विकास यात्रा

पिछले अंक-में---दीपावली के अवसर पर

जयराम सिंह गौर
की लघुकथा- वृंदावन में राम
*

ललित शर्मा से कलादीर्घा में
श्रीराम के पुरातात्विक कला शिल्प
*

लीला कृपलानी का आलेख
दीप ज्योति परम ब्रह्म
*

दीपावली के अवसर पर-
मनोहर पुरी का आलेख- पर्वपुंज दीपावली

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
अशोक कुमार प्रजापति की कहानी- कर्ज के दस रुपये

कार्तिक के शुरुआती दिन थे। दिन उजला और धूप गुनगुनी होने लगी थी। मीलभर कच्ची डगर की धूल फाँकता स्कूल से जब घर लौटा, उस वक्त मेरी माँ मिट्टी की मूर्तियों के नाक नक्श दुरुस्त करने के काम में बड़ी तन्मयता से लगी थी। वह यह उबाऊ काम अपने सधे हाथों से अत्यंत धीमे-धीमे कर रही थी ताकि उनकी आकृति सही सलामत रहे। खंडित मूरत को कोई कौड़ी के भाव भी नहीं पूछता। तनिक भी टूट-फूट हुई नहीं कि सप्ताह भर की मेहनत अकारथ। सुडौल और सुन्दर, आभायुक्त मूरत ही लोगों के घरों के छोटे-छोटे मंदिरों और बच्चों के घरौंदों में अपना स्थान पाती है। दीपावली नजदीक थी। मुझे आता देख गीले मिट्टी से सने हाथ रोक कर माँ मेरी तरफ देखने लगी- ''क्या हुआ रे मकनू? आज फिर से रोनी सूरत क्यों बना रखी है? लगता है आज फिर तू परमेसर पासी की ताड़ी जमीन पर उड़ेल आया है...कि मैं झूठ बोल रही हूँ?" जवाब में मैं चुप ही रहा और खूँटी से अपना बस्ता लटकाकर हाथ-मुँह धोने कुएँ पर चला गया। आगे...

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग घर–परिवार दो पल नाटक
परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वाद और स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसररेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

Loading