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लेखकों से
१. ८. २०२०

इस माह-

अनुभूति में-
वेबीनार 'सावन के झूले पड़े' में देश विदेश के अनेक रचनाकारों द्वारा पढ़ी गयी रचनाओं का संग्रह।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस लॉक-डाउन में मिठाइयों को तरसते मन के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- मौसम की मिठाई अनरसे

स्वास्थ्य के अंतर्गत- दिल की आवाज सुनो- बारह उपाय जो रखें आपके दिल की सेहत को दुरुस्त- ८- रक्त में चीनी कितनी है।

बागबानी- आयुर्वेद की दृष्टि से उपयोगी बारह पौधे जो हर घर में उगाए जा सकते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है- ८- अजवायन का पौधा।

बचपन की आहट- शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु- इकत्तीस से चौंतीस सप्ताह तक

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अगस्त) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- डॉ.राजेन्द्र गौतम की  कलम  से  बाबूराम शुक्ल  के  नवगीत संग्रह- संवेदन के मृगशावक का परिचय। 
वर्ग पहेली- ३२८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति के अंतर्गत- 

समकालीन कहानियों में भारत से
मिथिलेश्वर की कहानी बारिश की रात

आरा शहर। भादों का महीना। कृष्ण पक्ष की अँधेरी रात। ज़ोरों की बारिश। हमेशा की भाँति बिजली का गुल हो जाना। रात के गहराने और सूनेपन को और सघन भयावह बनाती बारिश की तेज़ आवाज़! अंधकार में डूबा शहर तथा अपने घर में सोये-दुबके लोग! लेकिन सचदेव बाबू की आँखों में नींद नहीं। अपने आलीशान भवन के भीतर अपने शयन-कक्ष में बेहद आरामदायक बिस्तरे पर अपनी पत्नी के साथ लेटे थे वे। पर लेटनेभर से ही तो नींद नहीं आती। नींद के लिए - जैसी निश्चिंतता और बेफ़िक्री की ज़रूरत होती है, वह तो उनसे कोसों दूर थी। हालाँकि यह स्थिति सिर्फ़ सचदेव बाबू की ही नहीं थी। पूरे शहर पर खौफ़ का यह कहर था। आए दिन चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार, राहजनी और अपहरण की घटनाओं ने लोगों को बेतरह भयभीत और असुरक्षित बना दिया था। कभी रातों में गुलज़ार रहनेवाला उनका यह शहर अब शाम गहराते ही शमशानी सन्नाटे में तब्दील होने लगा था। आगे...
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अर्बुदा ओहरी की
लघुकथा- बरसात
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महेश परिमल का
ललित निबंध- पहली बारिश
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डॉ. विजय कुमार सुखवानी से जानें
फिल्मी गीतों में बरसात
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पुनर्पाठ में उमाशंकर चतुर्वेदी
की कलम से- पावस के शृंगारिक छंद

चाय विशेषांक में-

श्रुतकीर्ति अग्रवाल की
लघुकथा- सूर्यास्त से पहले
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रवि रतलामी का व्यंग्य
चाय चलेगी
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पंकज त्रिवेदी का ललित निबंध-
चाय पीने का मेरा भी मन है
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
चाय की अजब गज कहानियाँ
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पुनर्पाठ में नवीन नौटियाल की कलम से
चाय की ऐतिहासिक यात्रा

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समकालीन कहानियों में भारत से
अनिल माथुर की कहानी एक प्याली चाय

हमेशा की तरह पत्नी के संग शहर की सबसे पॉश कॉलोनी में वॉक करते सुधीरजी स्वयं को किसी शहंशाह से कम नहीं समझ रहे थे। सवेरे और शाम की नियमित सैर उनका बरसों से चला आ रहा नियम था। तबीयत ठीक हो या न हो, इच्छा हो या न हो, शाम की सैर में तो साधनाजी को भी उनका साथ देना ही पड़ता था। “समय रहते इस कॉलोनी में फ्लैट बुक करवाकर हमने कितनी समझदारी का काम किया न! देखो अब एक भी मकान खाली नहीं बचा है यहाँ। और सारे के सारे कितने प्रतिष्ठित लोग रहते हैं! मुझे तो लगता है कि शहर के सारे बड़े अफसर, बिज़नेसमैन यहीं आकर बस गए हैं। जिस इलाके में लोग किराए पर रहना अफोर्ड नहीं कर सकते, हमने अपना फ्लैट लिया है।” आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


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संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी