अनुभूति

  16. 3. 2004

आज सिरहानेआभारउपन्यासउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएं।गौरवगाथा
घर–परिवार
दो पलपरिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
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साहित्य संगम में 
शुभांगी भड़भड़े की मराठी कहानी

सारांश

रात देर गए शादी से लौटे तो फोन की घंटी बज रही थी। मालती बाई ने लपककर रिसीवर उठाया और मिलिंद को अविनाश व प्रकाश की शादियां होने की खबर दी। फिर बोली, "उनकी शादी तय होने में बड़ी देर लगी। पैसा नहीं है, बिजनेस अभी संभला नहीं है। लड़कियां भी कौन देगा? पर मिलिंद, तुम्हारे लिए तो अभी से रिश्ते आ रहे हैं। तुम आ जाओ तो बात पक्की करें। सोचती हूं, परदेस में साथ हो जाएगा पत्नी का।" उधर से मिलिंद के हंसने का स्वर आया और वह बोला, "मेरे पत्र का इंतजार करो, मां!" पत्र आने में आठ–दस दिन लग गए। मालती बाई के पांव जमीन पर टिक नहीं रहे थे। कैसी साड़ियां लूं? गहने कौन से लें? लड़की कैसी हो, कितनी पढ़ी–लिखी हो? डाक्टर हो या इंजीनियर? 

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कहानियों में
भ्ारत से प्रभु जोशी की कहानी
अलग अलग तीलियां

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ललित निबंध में
महेश कटरपंच का आलेख 
बृज में होली का त्योहार

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वैदिक कहानियों में
डा रति सक्सेना की कलम से
इंद्र भाग –2

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समाचार में
यू के व नार्वे के हिन्दी लेखकों की नयी हिन्दी पुस्तकों का विवरण
तीन लोकार्पण समारोह

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कलादीर्घा में
आधुनिक और पारंपरिक कालाकृतियों से
सुसज्जित दीर्घा

कलाकृतियों में होली

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इस सप्ताह

उपन्यास में
स्वदेश राणा का अप्रकाशित उपन्यास
'कोठेवाली'

ढक्की दरवाज़ा गली तो क्या, पूरे गुजरात तहसील में किसी ने चलती फिरती मेम नहीं देखी थी। लेकिन जब भी रेडिओ से किसी गार्डन पार्टी या हुकूमती इजलास की खबर आती, ढक्की के मर्दों की नज़रें दूर–दूर तक मेमों की तलाश में निकल पड़ती।
"सुना है नंगी टांगों पर खुदरंग जुराबे पहन कर घूमती हैं।"
"हाथ मिला कर बात करती हैं!"
"नहीं तो क्या गले मिलेंगी?"
"उसका भी इंतज़ाम हो जाता है। मर्द औरते एक दूसरे को बुक में लपेट कर नाचते जो हैं।"
"कहते हैं पान सुपारी कभी नहीं खाती लेकिन बुल्लियां रंग लेती है।"
"लाहौर वालों ने देखी हैं। एक सराफे में गवर्नर साहिब की घरवाली जे़वर लेने गई थी। पूरा एक हफ्ता बाद तक गली में से खुशबू आती रही।"

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संस्मरण में
सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी की पुण्य तिथि 21 मार्च के अवसर पर श्रद्धांजलि
एक कथा अर्धशती को नमन
महेश दर्पण द्वारा

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प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का आलेख
मानसून
प्रकृति का जीवन संगीत

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आज सिरहाने
सूर्यबाला के कहानी संग्रह का परिचय
इक्कीस कहानियां
सुमित्रा अग्रवाल द्वारा

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हास्य व्यंग्य में
डा प्रेम जनमेजय की व्यंग्य रचना
पुरस्कारम देहि
1

!सप्ताह का विचार!
नुष्य जितना ज्ञान में 
घुल गया हो उतना ही कर्म के
रंग में रंग जाता है। 
—विनोबा

 

अनुभूति में

समस्यापूर्ति(2) की 70 प्रविष्टियां
साथ ही
अक्षय कुमार व
वीणा विज की
कविताएं

होली विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

कहानियों में
होली मंगलमय होओम प्रकाश अवस्थी
संकल्पनीलम शंकर
उससे मिलनाउषा राजे सक्सेना
अमृतघटडा मीनाक्षी स्वामी
रेशमी लिहाफविनीता अग्रवाल 
विसर्जन मीरा कांत
°

सामयिकी में
पर्व परिचय के अंतरगत होली के पारंपरिक महत्व पर दामोदर पाण्डेय
लेकिन मुझको फागुन चाहिये
°

मंच मचान में
प्रख्यात हास्य कवि काका हाथरसी के जीवन की झांकी कभी सरदी कभी गरमी
अशोक चक्रधर की कलम से
°

फुलवारी में बच्चों के लिए प्रेम जनमेजय
की कहानी
होली वाला रोबोट और
होली का एक सुंदर चित्र

रंगने के लिये
°

विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप की कलम से
मंगल ग्रह का कुशल–मंगल
°

आत्मकथा में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
यह तो नहीं होना चाहिये था
°

समाचार में हिन्दी की ओर एक और कदम
माइक्रोसॉफ्ट ने प्रस्तुत किया

विंडोज़ व ऑफिस हिन्दी
°

साहित्य समाचार में 
मुंबई से सूरज प्रकाश की रपट
रावी पार का रचना संसार
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परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
घर से घर तक और
नार्वे निवेदन के अंतर्गत प्रभात कुमार
नार्वे में भारतीय तिरंगा
के साथ

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
      सहयोग : दीपिका जोशी
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