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२३. ११. २००९

सप्ताह का विचार-  
अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। -धर्मवीर भारती

अनुभूति में-
कुमार रवीन्द्र, राजकुमार कृषक, अंबरीष श्रीवास्तव, ज़्देन्येक वागनेर और निर्मला सिंह की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- यहाँ एक कहावत है- अगर मरुस्थल में कभी रास्ता भूल जाओ तो ऊँट के पदचिह्नों का अनुसरण करो... आगे पढ़ें

समयिकी में- ओबामा प्रशासन की पड़ताल करते हुए वाशिंगटन से डॉ. वेदप्रताप वैदिक का आलेख- ओबामा के अमेरिका का आँखों देखा हाल

रसोई सुझाव- सूजी को हल्का भूनने के बाद ठंडा कर के हवाबंद डिब्बों में रख दिया जाए तो उसमें कीड़े नहीं लगते।

पुनर्पाठ में- समकालीन कहानियों के अंतर्गत १ अक्तूबर २००१ को प्रकाशित भारत से डॉ. संतोष गोयल की कहानी बकरीदी

क्या आप जानते हैं? कि साँप सीढ़ी के खेल का आविष्कार १३वीं शताब्दी में भारत में संत ज्ञानदेव ने किया था और इसका नाम रखा था मोक्षपथ।

शुक्रवार चौपाल- आज की चौपाल के कार्यक्रम में विशेष आकर्षण था सत्यजित राय की रहस्य रोमांच से भरपूर कहानियों का पाठ... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- आशा है इस सप्ताह सभी विशेषज्ञ टिप्पणीकार अपनी अपनी टिप्पणियाँ आलेख के रूप में प्रकाशित कर देंगे।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से महेशचंद्र द्विवेदी की कहानी चाची

चाची! तुम पूछोगी नहीं, 'लला! मेम साहब कौ नाईं लाए का?'
मैं आ गया हूँ और तुम्हें बताने को उत्सुक हूँ कि मेम साहब भी आईं हैं, मेरे पीछे बरामदे के दरवाज़े पर किवाड़ का सहारा लेकर खड़ीं हैं- तुम्हारे द्वारा पूछे जाने की प्रतीक्षा वह भी कर रहीं हैं। पर हम जानते हैं कि यह प्रतीक्षा तो हमारी मृगतृष्णांत करने को मृगमरीचिका मात्र है- तुम तो हमसे इतनी रूठ गई हो कि कभी भी हमसे कोई पूछताछ न करने का संकल्प ले चुकी हो।दोपहरी हो चुकी है और दोपहर चाहे जाड़े की हो, बरसात की हो या गर्मी की, उस समय तुम्हारे मुहल्ले की दस-पाँच स्त्रियाँ तो तुम्हें घेरे ही रहती हैं-
मुनुआँ की दादी को अपनी बहू द्वारा उलटा जवाब दिए जाने की शिकायत करनी होती है, चमेली को अपनी सास की गालियों से तंग आकर अपने दिल की भड़ास निकालनी होती है, चुन्नी को पेट में बच्चा आ जाने की ख़बर देकर खाने पीने के परहेज के बारे में पूछना होता है...  पूरी कहानी पढ़ें...
*

विनोद विप्लव का व्यंग्य
सच की नगरी और चोरों का राजा
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का पाचवाँ भाग

*11

रामकृष्ण का आलेख
गीता की रचना
*

ज्ञान-विज्ञान में डॉ. गुरूदयाल प्रदीप से जानें
सदुपयोग मकड़ी के जाले का

1

पिछले सप्ताह-
 

हरिशंकर परसाईं का व्यंग्य
एक मध्यवर्गीय कुत्ता
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का चौथा भाग

*11

संस्कृति में कनीज भट्टी का लेख
रूप का रखवाला घूँघट
*

धर्मवीर भारती का संस्मरण-
जब मैंने पहली निजी पुस्तक खरीदी

*

समकालीन कहानियों में
भारत से भालचंद्र जोशी की कहानी कहीं भी अँधेरा

मैंने बहुत सावधानी से चारों ओर देखा लेकिन मेरे सिवा वहाँ कोई नहीं था। मुझे तसल्ली हुई, जिसका कि कोई कारण नहीं था। चारों ओर घने और बड़े-बडे पेड़, मुझे अजीब-सा लगा। मैंने हाथ बढ़ाकर एक पेड़ को धीरे से सरकाया तो सहसा पीछे से एक दूसरा ही दृश्य सामने आ गया। दूर-दूर तक पहाडियाँ और उन पर कहीं घास तो कहीं चट्टानें उगी थीं। मुझे उस बात का आभास नहीं हुआ कि यहाँ कहीं कोई है। सहसा एक चट्टान के पीछे से वह बाहर निकली और मेरी ओर बढ़ने लगी। मैं घास के एक छोटे से टुकड़े के सहारे लेट गया। वह अचानक दिखाई देना बंद हो गई। मैं खड़ा हुआ तो वह फिर नज़र आई। अब वह मेरे नज़दीक थी। मुस्करा भी रही थी। उसकी मुस्कान में किंचित कौतुहल था या मेरे साथ होने का पुलक, मैं ठीक से यह समझ पाता, उसके पहले ही उसने मुस्कान समेट ली। मुझे थोड़ा पूरी कहानी पढ़ें...

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