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                  सप्ताह 
                  
                  का 
                  
                  विचार- दूसरों के सुख 
					में अपनी समृद्धि देखना ही समृद्धि का आदर्श नियम है। इसे 
					स्वार्थ के लिये बदला नहीं जा सकता।
								-श्री परमहंस योगानंद |  |  
                
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                   अनुभूति 
					में- 
					विमलेश चतुर्वेदी विमल,-जेनी-शबनम, रामावतार त्यागी और संतोष गोयल की 
					रचनाएँ तथा वर्षा से संबंधित कार्यशाला-१० के चुने हुए गीत। |  |  | 
              
              
                
                  
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                    इस सप्ताहकरवाचौथ के अवसर पर समकालीन कहानियों में 
                    भारत से
					मनमोहन भाटिया की कहानी 
					रिश्ते
 
					
					 
                    सुबह का समय था। ऑफिस जाने की तैयारी पूरी हो 
					चुकी थी। खाने की मेज पर नाश्ते का इंतजार सुबह का अखबार पढ़ 
					कर हो रहा था। पत्नी शर्मिला रसोई में नाश्ते के साथ ऑफिस ले 
					जाने का लंच का टिफिन भी पैक करने में व्यस्त थी। मध्यवर्गीय 
					परिवार की तो लिखने-पढ़ने की मेज और खाने की मेज एक ही होती 
					है। शुक्र है कि कुछ समय पहले खाने की मेज खरीदी, वरना बिस्तर 
					पर ही नाश्ता, खाना, सोना सब कुछ होता था। "अखबार बंद करो, नाश्ता तैयार है।" शर्मिला ने रसोई से आवाज दी 
					और ट्रे में नाश्ता सजा कर ले आई। ब्रेड मक्खन के साथ आलू के 
					चिप्स देखकर सुनील चहक उठा, "आज तो एकदम छुट्टी के दिन वाला 
					नाश्ता बना दिया। मजा आ गया।"
 "आज मेरा व्रत है, खाना सीधे शाम को ही बनाऊँगी, सोचा सुबह कुछ 
					हल्का और नया बना दूँ आपके लिये।
 पूरी कहानी पढ़ें...
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                    पं. वेदप्रकाश शास्त्री का 
					व्यंग्यमेरा करवाचौथ का व्रत
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                    दीपिका जोशी की कलम से-पर्व परिचय: करवाचौथ
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                    कला दीर्घा में विभिन्न कलाकारों की कूची से- करवाचौथ
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      समाचारों मेंदेश-विदेश से  
      साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
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      पिछले सप्ताह 
                    हरि जोशी का व्यंग्यकार्यालयों की गति
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                    रश्मि सिंह का आलेखमाउसलेस- एक अदृश्य कंप्यूटर माउस
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                    देवेंद्र चौबे की कलम से- 
					मुक्तछंद के प्रथम कवि महेश नारायण
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      पर्यटक के साथ करेंबात बर्लिन की
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                    समकालीन कहानियों में 
                    यू.एस.ए सेइला प्रसाद की कहानी
					एक 
					अधूरी प्रेमकथा
 
					
					 
                    मन घूमता है बार-बार उन्हीं खंडहर हो गए मकानों 
					में, रोता-तड़पता, शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, 
					पैबन्द लगाने की कोशिशें करता... मैं टुकड़ा-टुकड़ा जोड़ती हूँ 
					लेकिन कोई ताजमहल नहीं बनता!ये पंक्तियाँ मेरी नहीं, निमिषा की हैं। मैने जब पहली बार उसकी 
					डायरी के पन्ने पर ये पंक्तियाँ पढ़ीं तो चकित रह गई थी। यह 
					लड़की इतना सुन्दर लिख सकती है! उसका उत्साह और बढ़ा था, उसने 
					कुछ और पन्ने चुन- चुन कर मुझे पढ़ाए थे।
 हम तो डूबने चले थे मगरसागरों में ही अब गहराइयाँ नहीं रहीं!
 "कैसे लिख लेती हो तुम ऐसा?" मैने प्रशंसा की थी। उसने कुछ 
					शरमा कर अपनी डायरी बंद कर दी थी। .पूरी कहानी पढ़ें...
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