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९. ५. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
बाबूराम शुक्ल, सीमा गुप्ता, ललिता प्रदीप, नागेश भोजने और सुनील साहिल की रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- बेसिल पेस्तो

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का १९वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- मधुमेह के लिये काली चाय

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- अगर हमें किसी जालपृष्ठ पर बार-बार जाने की आवश्यकता पड़ती है तो उसको हम अपने फेवरेट्स या बुकमार्क्स में जोड़ सकते हैं।

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ के लिये नवगीत का विषय है टेसू या पलाश। रचना भेजने की अंतिम तिथि २० मई है।

वर्ग पहेली-०२८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- का आरंभ इस सप्ताह स्वरूपा राय के आगमन के साथ हुआ। इमारात के बच्चों को हिंदी पढ़ाने की समस्याओं से लेकर... आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
पावन की कहानी- दो तस्वीरें दो कहानियाँ

अरे! हैलो!
कब तक ताकते रहोगे? अब बस भी करो। अधिक मत सोचो, मुझे कहने दो।
यह मेरा ही फोटो है। मैं, अवनिका, उम्र छब्बीस साल, रिहाइश दिल्ली। इस फोटो में मैं जहाँ हूँ वहीं से शुरू करती हूँ-  कुछ चीजों पर किसी का बस नहीं होता, शायद ईश्वर का भी नहीं। वे होने के लिए बनी होती हैं, होना ही उनकी नियति होती है। हम सिर्फ बाध्य होते हैं उसे होते देखते रहने के लिए। मेरे साथ क्या हुआ? यही तो। मेरे वश में कभी भी कुछ नहीं रहा। मेरे साथ जो घटता रहा, मैं मूक उसे देखती रही और आज भी देख रही हूँ। इस सबके पीछे कारण तो कई हो सकते हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है खुद को किस्मत के सहारे छोड़ देना और ठोस विश्वास करना कि यही मेरी किस्मत में लिखा है। किस्मत जैसा कि मैंने पहले कहा 'होना ही उनकी नियति होती है` का दूसरा रूप है। पूरी कहानी पढ़ें...

*

यशवंत कोठारी का व्यंग्य
मेरी असफलताएँ
*

भरत चंद्र मिश्र का आलेख- हिन्दी कविता में
चमत्कार काव्य के एकमात्र कवि- ह्रषीकेश चतुर्वेदी

*

कुसुम खेमानी का सरस यात्रा विवरण
आसमान से झरा समुद्र में तिरा एक भारत और
*

पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप का आलेख
जैव-ईंधन : ऊर्जा के नये वैकल्पिक स्रोत

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पिछले सप्ताह-

1
रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
स्वर्ग - नर्क की पात्रता
*

मेधा सेठ के शब्दों में
मराठी रंगमंच का विकास

*

डॉ. मनोज मिश्र की दृष्टि से
भारत का स्वास्थ्य पर्यटन और ओबामा की चिंता
*

पुनर्पाठ में दो पल के अंतर्गत
अश्विन गांधी का आलेख पहली रात

*

समकालीन कहानियों में भारत से
इंदिरा दांगी की कहानी- करिश्मा ब्यूटी पार्लर

बड़ी चर्चा है, कॉलोनी में नया ब्यूटी पार्लर खुला है। पिछले एक दशक से आसपास की चार कॉलोनियों सहित इस कॉलोनी पर एकछत्र राज करने वाले भव्य ब्यूटी पार्लर की गर्वीली संचालिका राजेश्वरी इन दिनों अपनी पुरानी ग्राहकों के मुँह से भी बस उसी पार्लर की चर्चाएँ सुन रही हैं। भव्य ब्यूटी पार्लर को ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर यों ग्राहकों का घटना राजेश्वरी को ईर्ष्या और चिड़चिड़ाहट से भर रहा था। राजेश्वरी के पति व्यवसायी थे। आमदनी कम न थी और राजेश्वरी को घर में करने को कोई काम भी न था सो लगभग दस साल पहले मकान के निचले, खाली पड़े हिस्से में ब्यूटी पार्लर खोला लिया और अब इतने वर्षों बाद उनका ब्यूटी पार्लर इतना प्रतिष्ठित हो चुका था कि काम सम्हालने के लिये उन्होनें दो सहायिकाएँ रख लीं थीं। वे संचालन भर करतीं, पार्लर सहायिकाएँ चलातीं। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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