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१४. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- नारायणलाल परमार, मदनमोहन अरविंद, सत्य प्रकाश बाजपेयी, सरस्वती माथुर और डॉ.अ.प.जै.अब्दुल कलाम की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- इस सप्ताह से- अंतर्जाल की संसार में सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में- ठंडाई

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- रात्रि में सोने का कार्यक्रम

बागबानी में- बगीचे के औजारों को हाइड्रोजन पैराक्साइड से साफ कर के जैतून के तेल या कोई अन्य तेल लगाकर रखना चाहिये।  ...

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ मई से १५ मई २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२१ पर समीक्षात्मक टिप्पणी प्रकाशित हो गई है। कार्यशाला-२२ का विषय इस सप्ताह प्रकाशित हो जाएगा । 

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- ९ जुलाई २००४  को प्रकाशित, भारत से विनीता अग्रवाल की कहानी— सलाखोंवाली खिड़की

वर्ग पहेली-०८१
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में यू.के. से
गौतम सचदेव की कहानी- पूर्णाहुति

भी हिमानी लिफ्ट तक भी नहीं पहुँची थी कि नगेश, अवनीन्द्र, शेखर और सबनीता उसका 'अन्तिम संस्कार' करने लगे। उन्होंने प्रिंटर की स्याही वाले खाली डिब्बे का हवनकुंड बना लिया और हिमानी ने उन्हें जो लिखित चेतावनियाँ और आदेश दिये थे, उन्हें फाड़-फाड़ कर हवनकुंड में आहुतियों की तरह डालने लगे। साथ में वे अपने बनाये मन्त्र पढ़ रहे थे। ये वही गालियाँ थीं, जो वे रोज दबी जबान से हिमानी को दिया करते थे। जब एक का मन्त्र खत्म होता, तो दूसरा फौरन अपना मन्त्र शुरू कर देता-  ओम् सत्यानाशिनी स्वाहा, ओम् बेड़ागर्किनी स्वाहा, ओम् सड़ियल थोबड़ी स्वाहा, ओम् मॉरिसन की रखैल स्वाहा। इस तमाशे को देखने के लिये आसपास के कर्मचारी आकर उनके चारों ओर खड़े हो गये। उनमें से एक ने हिमानी द्वारा लिखी 'भारतीय व्यंजनों की पाक-विधि' नामक पुस्तिका की आहुति डालते हुए कहा- 'ओम् दूसरे से लिखवाई किताब की कूड़ा लेखिका स्वाहा।' ऐसा लग रहा था मानो हैरिसन फ़ूड्स का एशियन डिपार्टमेंट दफ़्तर नहीं, कोई यज्ञशाला है। विस्तार से पढ़ें...
*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
दूरदृष्टि
*

डॉ. परमानंद पांचाल का आलेख
भाषा, मुहावरे और शतरंज

*

आज सिरहाने- सुधा ओम ढींगरा का
कहानी संग्रह- कौन सी जमीन अपनी
*

पुनर्पाठ में
पर्यटक के साथ देखें- गौरवशाली ग्वालियर

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पिछले सप्ताह-


कमलेश पांडेय का व्यंग्य
संत सुनेजा
*

वेदप्रकाश अमिताभ का निबंध
गीत में घर और गाँव- अपनी जड़ों की तलाश

*

डा. रवीन्द्र अग्निहोत्री का आलेख
इजराइल में हीब्रू-संकल्प का बल
*

पुनर्पाठ में हेमंत शुक्ल मोही की
कलम से-
बाल फिल्मों के प्रेरणास्रोत
*

समकालीन कहानियों में भारत से तरुण भटनागर की कहानी- देश तिब्बत राजधानी ल्हासा

जब तक मैंने वहाँ के बाशिंदों को नहीं देखा था, पहले-पहल वह गाँव ठेठ ही लगा। यह बात थी उन्नीस सौ अस्सी की। वह गाँव इतना ठेठ लगा था, कि लगता है वह आज भी जस का तस है। रुका हुआ और अ-बदला। छत्तीसगढ में वह समुद्र तल से सबसे अधिक ऊँचाई पर बसी जगह है। वहाँ के रहवासी हमारे यहाँ के नहीं जाने जाते हैं। उन लोगों को देखकर उस गाँव का ठेठपन चुकने लगता है और उसकी जगह अजीब सा बेगानापन घिर आता है। लंबे बीते समय ने यह जतलाया कि चपटी खोपडी वाले ये लोग दूसरों से अलग नहीं हैं, सिवाय इसके कि वे अलग दिखते है। ...और यह भी कि इस गाँव में बीते पचास सालों में और उस दिन जब मैं वहाँ गया था, बीत चुके छब्बीस सालों में, उन्होंने यह मानने की भरसक कोशिश की है, कि यह जमीन, यह आकाश, यह जंगल, दूर तक फैले हरे घास के मैदान, लोग, जानवर...सब उनके ही तो हैं।  वे आज भी एक झूठा ढाँढस खुद को देते हैं। विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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