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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश // पता-


९. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
दिनेश सिंह, हस्तीमल हस्ती, राजेन्द्र कांडपाल, भगवतशरण अग्रवाल और पं. विद्या रतन आसी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से राजस्थानी व्यंजनों की शृंखला में- कांजी बड़ा।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- पानी से सावधान

बागबानी में- बगीचे की देखभाल के लिये टीम अभिव्यक्ति के अनुभवजन्य अनमोल सुझाव- इस अंक में- धूल से बचाव

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ जुलाई से १५ जुलाई २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ - 'गर्मी के दिन' के लिये आमंत्रित नवगीतों पर समीक्षा इस सप्ताह प्रकाशित करने का प्रयत्न करेंगे।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- १ अप्रैल २००३ को प्रकाशित भारत से डॉ. नरेश की कहानी- ममता

वर्ग पहेली-०८९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
अनिलप्रभा कुमार की कहानी बहता पानी

मालूम था उसे कि इस बार कुछ बदला हुआ ज़रूर होगा। मायका होगा, माँ नहीं होगी। पीहर होगा, पिता नहीं होंगे। भाई के घर जा रही है। भाभी होगी, भतीजी ससुराल में होगी। कैसा लगेगा? इस प्रश्न के ऊपर उसने दरवाज़े भिड़ा दिये थे। एक दर्शक की तरह तैयार थी भावी का चलचित्र देखने के लिए। हवाई-अड्डे से बाहर निकलते ही एक रुलाई सी दिल पर से गुज़र गई। क्या इस बार उसे लेने कोई भी नहीं आया? भीड़ में ढूँढती रही अपनों के चेहरे। भीतर- बाहर सब देख कर जब फ़ोन की तरफ़ बढ़ रही थी तो भाई दिख गया। उसका छोटा भाई, जिसके साथ लाड़ का कम और लड़ने- डाँटने का रिश्ता ज़्यादा था।
"मैं तो तुम्हें अन्दर ढूँढ रहा था।"
"मैंने समझा शायद तुम बाहर होगे।"
भाई ने सूटकेसों से भरी ट्रॉली का हत्था अपने हाथ में ले लिया और आगे बढ़ गया। हमेशा ऐसे ही वह उससे मिलता है। मिलने की कोई औपचारिकता वह कभी भी नहीं करता। विस्तार से पढ़ें

*

डॉ. सरस्वती माथुर की
लघुकथा- माँ की आँखें
*

अनिल प्रभा कुमार के कहानी संग्रह
बहता पानी से परिचय

*

अवनीश चौहान की श्रद्धांजलि
समृतिशेष दिनेश सिंह


*

पुनर्पाठ में अचला शर्मा का आलेख
रेडियो नाटक का पुनर्जन्म

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पिछले सप्ताह-


यशवंत कोठारी का व्यंग्य
मानसून, मच्छर, मलेरिया और मैं
*

सुरेश नौटियाल का आलेख
रियो+२० सम्मेलन के बाद

*

कुमार रवीन्द्र का संस्मरण
'गीत-लिखा-प्रीत-लिखा'-'पुलकित-मन'-भाई-भारतभूषण
*

पुनर्पाठ में अनिल विश्वास से बातचीत
आज का संगीत दैहिक हो गया है

*

समकालीन कहानियों में संयुक्त भारत से
आभा सक्सेना की कहानी अनुत्तरित प्रश्न

यों तो वे थे मेरे दूर के रिश्ते के मामा ही पर, मेरी माँ ने ही उन्हें पढ़ाया लिखाया या फिर यों कह लो उनकी सारी परवरिश ही मेरे माँ-बाबूजी ने ही की थी। उसके बाद जब मेरे मामा विवाह योग्य हुये तो उनका विवाह भी मेरे घर में ही हुआ। इस तरह मेरे मामा-मामी ने मुझे इतना प्यार दिया कि वे लोग मुझे सगे मामा-मामी जैसे ही लगने लगे। मेरी मामी बहुत ही सुन्दर थीं। शायद थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी भी। उनका सर्वश्रेष्ठ गुण यह था कि उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खिली रहती थी। कोई भी उन्हें डाँट लेता फिर भी वह हमेशा मुस्करा कर ही सबको खुश कर लिया करतीं। उनके विवाह के समय मेरी उम्र बहुत छोटी थी। बस इतनी कि मैं हर समय शैतानियाँ करती इधर से उधर फुदकती रहती। घर में कोई भी शादी ब्याह का माहौल होता मामी ढोलक-हारमोनियम लेकर बैठ जातीं और तरह-तरह के बन्ने-बन्नियाँ गा-गा कर घर में-एक-शादी-का-सा-माहौल-बना-देतीं। विस्तार से पढ़ें

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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