अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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 २३. २. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1प्रदीप कान्त, कल्पना रामानी, रश्मि भारद्वाज, विनोद पांडेय व सुमन बहुगुणा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- होली के चटपटे त्योहार के लिये हमारी रसोई-संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं, स्वाद और स्वास्थ्य से भरपूर- खीरे की चाट

बागबानी में- कुछ आसान सुझाव जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोटक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं- ४- फ्लैट में बगीचा

जीवन शैली में- कुछ आसान सुझाव जो व्यस्त जीवन में, जल्दी वजन घटाने के लिये बहुत सहायक हो सकते हैं- ७- चीनी से आँख मिचौली  

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- ३- पारंपरिक छापों के क्या कहने

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- आज के दिन (२३ फरवरी को) जादूगर पीसी सरकार, अभिनेत्री भाग्यश्री, निर्देशक गोल्डी बहल, फैशन डिजाइनर सव्यसाँची... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- जगदीश पंकज की कलम से देवेन्द्र शर्मा इंद्र के नवगीत संग्रह- परस्मैपद का परिचय।

वर्ग पहेली- २२५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
गोविन्द उपाध्याय की कहानी- एक टुकड़ा सुख

रिक्शा स्टैण्ड पर उसने रिक्शा खड़ा करके अपना पसीना पोंछा। नगरपालिका के नल से चंद घूँट पानी निगलने के पश्चात उसके गले की जलन तो शांत हो गई, लेकिन खाली पेट में पानी का प्रवेश पाकर, आमाशय विद्रोह कर उठा। पेट के मरोड़ को सहन करने के साथ ही वह अपने धचके हुए पेट को सहलाने लगा। उसे अपने रिक्शे की तरफ आती दो युवतियाँ दिखायी दीं। अंग्रेजी सेंट की खुशबू उसकी नाक में समा गयी। वह गहरी साँस के साथ, ढेर सारी खुशबू फेफड़ों में समा लेना चाहता था, किंतु फेफड़ों ने साथ ही नहीं दिया। वह पास आती युवतियों को देखता हुआ अपने व्यवसायिक अंदाल में बोल पड़ा- ‘आइए मेम साहब, कहाँ चलेंगी?’
‘इम्पीरियल टाकीज।’
‘आइए बैठिए।’
‘कितने पैसे लोगे?’
‘दस रुपए।’
अरे नहीं। बहुत ज्यादा है। पाँच रुपये लोगे?
वह कुछ सोचने के लिए रुका था कि सवारियों को आगे बढ़ता देख बोल पड़ा, ‘आइए बीबी जी चलते है।’ आगे-
*

शशिकांत गीते की
लघुकथा- आस्था
*

प्रोफेसर हरिमोहन के साथ पर्यटन
माँझीवन का सौदर्य लोक
*

विजय बहादुर सिंह के शब्दों में
एक और निराला

*

पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का पहला भाग

पिछले सप्ताह-

ओजेन्द्र तिवारी की
लघुकथा- दिल
*

हजारी प्रसाद द्विवेदी का ललित निबंध
शिरीष के फूल
*

डॉ. अशोक उदयवाल से
स्वास्थ्य चर्चा- साग चौलाई का

*

पुनर्पाठ में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप की विज्ञान वार्ता
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और नोबेल पुरस्कार

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
पावन की कहानी- और नैना बहते रहे

कहाँ से शुरू करूँ?
ली मैरिडियन के कमरा नम्बर नौ सौ सात से, जहाँ मैं अभी हूँ और अनिरुद्ध की प्रतीक्षा कर रही हूँ। या परसों हुई उस मुलाकात से, जब मैं और अनिरुद्ध चौदह साल बाद मिले थे, बिल्कुल अचानक, अनपेक्षित। या अपने मन में पनप चुके प्यार के एहसास को अनिरुद्ध को बताने से, जब उसकी कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि मेरी शादी होने में कुछ दिन ही बाकी थे। या पुरानी मोहब्बत की कहानी, जिसने एकदम से ही मेरे भीतर नये सिरे से सिर उठा लिया था।
...सोच रही हूँ वर्तमान से ही शुरू करती हूँ, उसमें अतीत अपने आप आ जायेगा, दिन बीत जाने के बाद रात की तरह। पाँच सितारा होटल का कमरा अपने ऐश्वर्य से मुझे चिढ़ा रहा था। सच तो ये था कि मैंने पहली बार ऐसा कमरा देखा था। मैं सिर्फ और सिर्फ चकित थी। सुख की, वैभव की ऐसी परिभाषा भी होती है? मैंने तो अपने जीवन में धर्मशालाएँ और गेस्ट हाउस ही देखे हैं। पाँच सितारा होटल तो बिल्कुल अलग अनुभव है।... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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