अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक
तुक कोश // शब्दकोश // पता-

लेखकों से
 १५. ८. २०१६

इस पखवारे-

अनुभूति-में-
विभिन्न रचनाकारों द्वारा रचित, विविध विधाओं में रक्षाबंधन के पर्व को समर्पित उत्सवी रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- रक्षाबंधन के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि लाई हैं इस पर्व पर बनने वाली एक चिर परिचित मिठाई- सेवई की खीर

फेंगशुई में- २४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर जीवन को सुखमय बना सकते हैं- १६- अध्ययन कक्ष की सजावट

बागबानी- के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव- १६- छटा पैंजी की

सुंदर घर- शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १६- बैंगनी का कमाल

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन (१५ अगस्त को) श्री अरविन्दो, इस्मत चुगताई, प्राण, हंसकुमार तिवारी, इंदीवर, रामदरश मिश्र, राखी, सिम्पल... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है- आचार्य संजीव सलिल की कलम से श्याम श्रीवास्तव (जबलपुर) के नवगीत संग्रह- यादों की नागफनी का परिचय।

वर्ग पहेली- २७४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-  रक्षाबंधन के अवसर पर

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
प्रेमपाल शर्मा की कहानी अजगर करे न चाकरी

मैं इतने ठंडेपन से कभी पेश नहीं आया था। यहाँ तक कि कमरे में घुसने से पहले ही मुझे सारी संवेदनाओं को फ्रीज करना पड़ा था। बार-बार चकनाचूर। मैं नहीं चाहता था कि मैं हर बार की तरह इस बार भी अजगर का एक निवाला मात्र सिद्ध होऊँ। और न तर्क-कुतर्क में उलझना चाहता था। तुम अपने रास्‍ते भले, हम अपने रास्‍ते। मैं या कोई भी कब तक झक-झक करता रहेगा! वही तर्क, वही मुद्राएँ, यह शख्‍स सुनता रहेगा बीच-बीच में यह कहता हुआ कि 'हमारा भी वक्‍त आएगा रे लाला! हम भी बता देंगे कि हम क्‍या हैं।' और यह वक्‍त पिछले २५ वर्ष से वहीं खड़ा है, लेकिन उनकी सेहत पर क्‍या असर पड़ा है। असर पड़ा है माँ पर, पिताजी पर और कुछ छींटे हम सब पर। 'दाढ़ी बढ़ाकर मस्‍त पड़ा रहता है। ऊपर से देशी घी की मिठाइयाँ, फल। लड़की घुट-घुटकर जी रही है।' पिताजी का रोष उनकी आवाज से जाहिर था। कई बार तो पिताजी लगभग इन्‍हीं बातों को इतनी जोर से कह बैठते कि हो न हो, उन्होंने पिताजी की आवाज को अपने कानों से खुद ही सुन लिया होगा।
... आगे-
*

विष्णु बैरागी का व्यंग्य
मैं अकेला बैठा हूँ
*

पवन कुमार जैन का आलेख
साधना की सुरक्षा में रक्षाबंधन
*

कादंबरी मेहरा की कलम से
राखी की लाज
*

वरुण कुमार सिंह से जानें
रक्षाबंधन इतिहास और पुराण से

पिछले पखवारे-

महेश द्विवेदी का व्यंग्य
सफाई अभियान
*

कुमार रवीन्द्र का आलेख
नवगीत
के 'अवांगार्ड' कवि डॉ.शिवबहादुर सिंह भदौरिया
*

चीन से गुणशेखर की पाती
श्वेनत्सांग के चतुर्चक्रवर्ती सम्राट
*

पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
सागर के इस पार से उस पार से का अठारहवाँ भाग

*

साहित्य संगम में ईश्वरचंद्र की सिंधी कहानी का
रूपांतर- अपने ही घर में रूपांतरकार हैं देवी नांगरानी

वसुधा और उसका बच्चा ताँगे के पिछले हिस्से में बैठे रहे। सामान उन्होंने आगे रखवा दिया। वसुधा के पिता ताँगे के आगे वाले हिस्से में बैठ गए। जब ताँगा चलने लगा तो वसुधा को लगा कि उसका शहर काफी बदल गया है। पाँच सालों के लम्बे अरसे के बाद इस शहर में आई थी, जहाँ उसने अपना बचपन बिताया, जहाँ बड़ी होते-होते बहुत से फूलों को खिलते और मुरझाते देखा था, जहाँ पक्षियों के जोड़ों को देखकर अपनी आँखों में अनेक सपने सजाए थे, जहाँ एक दिन सजी-सजाई डोली में बैठकर वह अपने मैके से बिछड़ गई थी।
पाँच साल बीत गए।
तब और अब में कितना फर्क आ गया है।
उसने रास्ते के दोनों ओर देखा। कितना बदल गया था उसका शहर! रास्ते चौड़े हो गए थे। टाऊन हॉल के पास से गुज़रते, उसने देखा कि सभी दुकानें पक्की हो गईं थीं। टाऊन हॉल के सामने एक बगीचा बन गया था। बहुत सारे फूल राहगीरों की ओर देखकर मुस्करा रहे थे। चौराहे पर सिग्नल लाइट्स और रास्तों पर बीमार बल्बों की जगह... आगे-

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग घर–परिवार दो पल नाटक
परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वाद और स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसररेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

Loading