इस माह- |
1
अनुभूति में-
दीपावली की जगमग में नहाई विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों
की अनेक रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति के अंतर्गत- दीपावली विशेषांक में |
समकालीन कहानियों में यूएसए से
राम गुप्ता
की कहानी-
चयन
नारायण दत्त एक जाने माने
शिक्षाविद थे। विद्यालयों में उनका किसी न किसी रूप में जाना
होता रहता था। जहाँ जाते लोग उनको हाथों-हाथ उठा कर रखते। इस
बार वह एक छोटे से महाविद्यालय की अनुदान स्वीकृत के लिए गए।
उनको यह जान कर थोड़ा रोष हुआ कि उनकी सुख सुविधा के लिए केवल
एक विद्यार्थी को भार सौंपा गया था। वह प्रोफ़ेसरों और
विद्यार्थियों को आगे पीछे देखने के आदी थे। दूसरे दिन उगते ही
उषा की लाली की ही भाँति एक कृषकाया ने अपना परिचय दिया,
''सर मैं शची हूँ, आपको कॉलेज ले चलूँगी।''
इसके बाद उसने जिस सहजता और कुशलता से उनके खानपान ठहरने से ले
कर कॉलेज के कार्यक्रम को सँभाला उससे उनका सारा रोष जाता रहा।
तीन दिनों में ही जब तक नारायण दत्त वहाँ रहे, एक तरह से उस पर
आधारित हो गए। दीनहीन परिवार की वह लड़की रूप, गुण, आचरण से
संपन्न थी। दिन पर दिन प्रबल होती आशा के वशीभूत नारायण दत्त
में शची को अपने बेटे चंदन की बहू बनाने की लालसा पनप उठी।
आगे...
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के.पी.सक्सेना का व्यंग्य
दगे पटाखों की महक
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मृदुला सिन्हा का साहित्यक
निबंध-
कार्तिक हे सखि
पुण्य महीना
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प्रमिला कटरपंच से
पर्व-परिचय-
लोक-पर्व साँझी
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चंद्र शेखर का आलेख
सत्य का दीया
तप का तेल
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पर्यटन में
जैसलमेर के विषय में विशेष लेख
सोने के शहर में रेत के सपने
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हास्य व्यंग्य में
काका हाथरसी का व्यंग्य
प्यार किया तो मरना क्या
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घर परिवार में
नन्हें बच्चों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
जब बिस्तर खिलौनों से
भर जाए
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साहित्य संगम में
गुलाबदास ब्रोकर की गुजराती कहानी-
आखिरी झूठ
रूपांतरकार हैं प्रमिला राजे

कितनी सुंदर है वह
बात करने का मौका मिल जाए तो मज़ा आ जाए। नरेश घिया ने अपने आप से कहा।
और बात करने के इरादे से उसने अपनी ओर बढ़ती हुई लड़की की तरफ मुसकरा
कर देखा। उसके चेहरे पर भी मुस्कुराहट थी। वह कह रही थी "मैं आपके पास
आ ही रही थी।" "सचमुच मुझे बहुत खुशी हुई मिस "नंदिता मेहता।" उसने
वाक्य पूरा किया। ''कल की गोष्ठी में मुझे
आप का व्याख्यान बहुत पसंद आया,'' फिर अचानक वह आत्मविभोर हो कर बोली
--''मुझे इतना पसंद आया कि मैंने सोचा अगर मैं खुद आकर आपका अभिनंदन
नहीं करती हूँ, तो अपनी नज़रों में ही गिर जाऊँगी।''
नरेश ज़रा झुककर बोला,''थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू, मिस।''
''नंदिता, नंदिता मेहता नहीं मिस्टर घिया।''
''पर आपने गलती की न, मिस नंदिता।''
''मैंने गलती की? कौन-सी?
''मेरा नाम मिस्टर घिया नहीं, नरेश है।''
''ओह, सॉरी, हाँ मैं अपनी खुशी ही आपके सामने व्यक्त करना
चाहती थी।'' ...
आगे- |
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