शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

24. 7. 2003 

अभिनंदनपत्रआज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्क
हास्य व्यंग्य

 

 पिछले सप्ताह

गौरव गाथा में
भीष्म साहनी की बहुचर्चित कहानी
चीफ़ की दावत

जब मेहमान बैठ गये और मां पर से सबकी आंखें हट गयीं, तो मां धीरे से कुर्सी पर से उठीं, और सबसे नज़रें बचाती हुई अपनी कोठरी में चली गयीं।

मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आंखों में छल–छल आंसू बहने लगे। वह दुपट्टे से बार–बार उन्हें पोंछतीं, पर वह बार–बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बांध तोड़कर उमड़ आये हों। मां ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की, बार–बार आंखें बन्द कीं, मगर आंसू बरसात के पानी की तरह जैसे थमने में ही न आते थे।

°
हास्य व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का चुटीला व्यंग्य
प से पोटा

°
आज सिरहाने में
अमरीक सिंह दीप का कहानी संग्रह
चांदनी हूं मैं
का परिचय कृष्ण बिहारी के द्वारा

°

रसोई घर में
'
शाकाहारी मुगलई का मस्त ज़ायका'
के अंतर्गत

आलू दो प्याज़ा

कथा महोत्सव 2003
भारतवासी हिन्दी लेखकों की कहानियों
का संकलन
'माटी की गंध'
°°°
चुनाव चौखाने
के मतदान में भाग लेने के लिये पाठकों
को बहुत–बहुत धन्यवाद
°°°
माटी की गंध की कहानियां हैं इस समय
विश्व के जाने माने चार हिन्दी कथाकारों
के पास।
 जहां वे न केवल इन कहानियों 
का मूल्यांकन करेंगे अपितु इन पर
अपनी टिप्पणी भी 
प्रस्तुत करेंगे।
यह संक्षिप्त समीक्षा अवसर प्रदान करेगी
बहुत से नये कहानीकारों को अपनी
कला निखारने का और कहानी के मर्म
को गहराई से समझने का।
—टीम अभिव्यक्ति

 

इस सप्ताह

कहानियों में
सऊदी अरब से विद्याभूषण धर की कथा लावारिस

खांसते खांसते श्यामलाल को निद्रादेवी ने कब थपकियां देकर सुलाया उसे पता ही नही चला और फिर उसने वही सपना देखा— गौरी कच्चे आंगण को लीप रही थी। सुबह की पहली किरण खिली हुई थी और ठन्डी ताजा हवा जैसे तपे हुए जिस्म को सहला रही थी। दूर कहीं मंदिर की घंटियों की आवाज वातावरण को संगीतमय बना रही थी। 
“आज जरा जल्दी आना . . .याद है ना? आज अष्टमी का व्रत है। कोई उल्टी–सीधी चीज न खा लेना बाहर। मैं इन्तजार करूंगी। उपवास इकटठे तोडेंगे। मुझे उम्मीद है माँ शारिका हमारी पुकार जरूर सुनेंगी। मैंने तुला मुला में मन्नत मांगी है।"

°

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल 
का आलेख
वृहत आकाश
और ओस्लो, नार्वे से
सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा
नार्वे निवेदन

°

यू के में हिन्दी
के अंतर्गत वेद मित्र की कलम से
हस्तलिखित पाठों से हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता तक

°

 धारावाहिक में
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा का 
अगला भाग
दो घण्टे चालीस मिनट
का सफ़र

°

विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप के साथ विज्ञान चर्चा
नैनोटेक्नॉलॉजी 
या फिर जादुई चिराग  
°

!सप्ताह का विचार!
लवार ही सब कुछ है, उसके बिना 
न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की।
—गुरू गोविन्द सिंह

 

अनुभूति में

सत्यनारायण सिंह के इक्यानबे दोहे
दो नये कवि
और
11 नयी
कविताएं

साहित्य समाचार
अभिव्यक्ति टीम यू के में 

° पिछले अंकों से°

उपन्यास में
ए बी सी डी–रवीन्द्र कालिया
°

कहानियों में
मन्ना जल्दी आना–दयानंद पांडेय
भटकावतरूण भटनागर
खुशबूग़ज़ाल ज़ैग़म
यह तो कोई खेल न हुआ–नवनीत मिश्र

°

संस्मरण में
गोविन्द मिश्रा का यात्रा संस्मरण 
उजाले की चलती–दौड़ती लकीर

°

कलादीर्घा में  
कला और कलाकार के
अंतर्गत
जहांगीर सबावाला का परिचय
उनके चित्रों के साथ

°

फुलवारी में
चांद तारों की दुनिया के अंतर्गत
इला प्रवीन से जानकारी
हमारी पृथ्वी
और कहानियों के अंतर्गत 
नीलम जैन  की पद्य कथा 
चिड़िया रानी

°

परिक्रमा में

दिल्ली दरबार 
के अंतर्गत बृजेश शुक्ला का आलेख 
गंगा की बेटी स्पेन में
°

देश विदेश के अंतर्गत 
नेपाल से धीरेन्द्र प्रेमर्षि का आलेख
भारतीय सहयोग–सिंचन से
उर्वर नेपाल

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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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