अनुभूति

 1. 2. 2004

अभिनंदनपत्रआज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

सामयिकी में
निराला जयंती के अवसर पर
महादेवी वर्मा की कलम से संस्मरण
जो रेखाएं कह न सकेंगी
°

विज्ञान वार्ता में
साल भर की विज्ञान गतिविधियों पर 
डा गुरूदयाल प्रदीप की कलम से
वैज्ञानिक अनुसंधानः
बीते वर्ष का लेखा–जोखा

°

धारावाहिक में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
शील सा’ब से बदलते रिश्ते
°

साहित्य समाचार में
गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली
के तालकटोरा स्टेडियम से
कवि सम्मेलन की रपट
और नार्वे निवेदन के अंतर्गत
ओस्लो समाचार
°

कहानियों में
गणतंत्र दिवस के अवसर पर
भारत से मीरा कांत की कहानी
विसर्जन

सप्ताह में लगभग दो बार फोन पर फौजी बेटे की रोशनी–सी आवाज के स्पर्श के लिए कान सप्ताह के सातों दिन सावधान की मुद्रा में रहते थे। रात का विश्राम भी वस्तुतः कानों के लिए सावधान ही होता था। फौजी के पिता के कानों को भला विश्राम कैसा! फोन वहीं से आ सकता था। यहां उस खुफिया जगह का नंबर नहीं दिया जा सकता था। इसलिए सप्ताह भर के उन असंख्य पलों में से वे कौन–से जीवंत पल होंगे जो उस रोशनी को बंसी के कानों तक लाएंगे, खुद उन पलों को भी नहीं मालूम था। न ही लगभग तीन महीने बाद आने वाले वे बदनुमा स्याह पल जानते थे कि बंसी के कानों को वे कबीर की नहीं, इंफाल से ही किसी सेनाधिकारी की आवाज सुनाने वाले हैं कि 'कबीर इज नो मोर'

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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से विनीता अग्रवाल की कहानी
रेशमी लिहाफ

कोठरी के भीतर बैठी बूढ़ी अम्मा की देह में भी झुरझुरी सी दौड़ गई। पूरी गली में किसी मनुष्य की आहट तक नहीं…पिन्टू भी  नज़र नहीं आ रहा जाने कहाँ  मर गया …वर्षा भी कोई मामूली नहीं पूरे झपाके के साथ बरसती ही जाती है …अम्मा ने बड़बड़ाते हुए खिड़की से सिर निकाला और तनिक ऊपर कर आसमान की ओर ताका तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो मोटे काले बादल उस पर भरभरा कर गिर पड़ेंगे। वह डरी और झटपट गर्दन को वापिस खींच खिड़की से कुछ दूर सरक कर बैठ गई। प्रकृति का विकराल रूप देख वह घबरा गई और  अपनी जर्जर देह को झटपट सिर से लेकर पाँव तक कम्बल  के भीतर दुबका लिया।

°

सामयिकी में
उषा राजे सक्सेना की कलम से
प्रवासी भारतीय दिवस
महोत्सव

का एक और दृष्टिकोण

°

'मंच मचान' में
वाचिक परंपरा के महत्व पर
अगली कड़ी अशोक चक्रधर की कलम से

मोह में भंग और भंग में मोह

°

धारावाहिक में
नव वर्ष की विभिन्न परंपराओं के विषय में दीपिका जोशी के आलेख
की दूसरी किस्त

देश देश में नववर्ष

°

फुलवारी में
जंगल के पशु लेखमाला के अंतर्गत 
बब्बर शेर 
से परिचय, शिशुगीत शेर और शेर का एक सुंदर चित्र
रंगने के लिये

!सप्ताह का विचार!
विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण,
विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे
में संचित धन है।
— हितोपदेश

 

अनुभूति में

नया संकलन,
समस्यापूर्ति, 
और
हल्दीघाटी के साथ
डा अजय पाठक के
ग्यारह नये गीत

नववर्ष विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

  कहानियों में
यह जादू नहीं टूटना चाहियेसूरज प्रकाश
सुबह होती है शाम होती हैरजनी गुप्त 
चेहरे के जंगल मेंतरूण भटनागर
वे दोनोंसुषम बेदी
हिरासत के बादसुरेश कुमार गोयल
युगावतार वीना विज 'उदित'

°

सामयिकी में
नयी दिल्ली में प्रवासी दिवस के अवसर पर हिन्दी आयोजनों की एक रिपोर्ट
गोष्ठियां और सम्मेलन
रामविलास के शब्दों में

°

हास्य व्यंग्य में
रवि रतलामी के आज़माए हुए नुस्खे
नया साल नये संकल्प

°

समीक्षा में
प्रदीप मिश्रा का आलेख
2003 में कविता की दस्तक

°

आज सिरहाने में
चित्रा मुद्गल का बहुचर्चित उपन्यास
आवां

°

साहित्यिक निबंध में 
डा रति सक्सेना की कलम से
वैदिक देवताओं की कहानियां
इस अंक में—
अग्नि

°
रसोईघर में
स–फल व्यंजन के अंतर्गत
इंद्रधनुष

°

परिक्रमा में
मेलबोर्न की महक के अंतर्गत
हरिहर झा का आलेख

आस्ट्रेलिया की आवाज़

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
  सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला