अभिव्यक्ति-चिट्ठा
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२६. . २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में- राम सेंगर, सिया सचदेव, शिखा वार्ष्णेय, सुशील कुमार आज़ाद की रचनाएँ और राष्ट्रपिता को समर्पित रचनाओं का संकलन- तुम्हें नमन।

- घर परिवार में

रसोईघर में- उत्सव का मौसम आ गया है। इसे स्वाद और सुगंध से भरने के लिये पकवानों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है-- बादाम बर्फी

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ३९वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- पेट में वायु-गैस के लिये मट्ठा और अजवायन

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ अक्तूबर से १५ अक्तूबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- चीज़े कैसे काम करती हैं- इस बारे में जानकारी के लिये- Howstuffworks.com - एक उपयोगी जालस्थल है।  ...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१८, विषय- उत्सव का मौसम के लिये आए गीतों का प्रकाशन इस सप्ताह प्रारंभ हो जायेगा।  

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- ९ अगस्त २००२ को प्रकाशित सुरेन्द्रनाथ तिवारी की कहानी— उपलब्धियाँ

वर्ग पहेली-०४८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
मथुरा कलौनी की कहानी- एक झूठ

कहानियों के लिये सामग्री हमें आसपास की जीवन से मिल जाती है। पात्रों के जीवन में झाँक कर और कुछ कल्पलना के रंग भर कर कहानी बन ही जाती है। सावधानी यह बरतनी पड़ती है कि पात्र या घटनाएँ बहुत करीब की न हों। बच्चे क्या सोचेंगे, भाई साहब कहीं बुरा न मान जाएँ आदि के चक्कर में रोचक उपन्यासों का मसाला धरा का धरा रह जाता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि पाठक कपोल कल्पित घटना को सच मान बैठते हैं। 'ऐसी कल्पना तो कोई कर ही नहीं सकता है, जरूर आपके साथ ऐसा घटा है!'
बहरहाल, आप बताइये कि यह कहानी सच्ची है या नही। मुझे तो लगता है कि इस कहानी का नायक झूठ बोल रहा है। ....कहते हैं युवावस्था में मन मचल जाता है, दृष्टि फिसल जाती है इत्यादि। रूमानी साहित्य में कालेज-जीवन में ऐसी घटनाओं के होने का वर्णन मिलता है। मेरा छात्र-जीवन अतीत के गर्त में कहीं है तो सही पर उसका वर्णन यहाँ पर विषयांतर होगा। ...
विस्तार से पढ़ें...

संजीव सलिल की लघुकथा
गांधी और गाँधीवाद
*

अनुपम मिश्र का आलेख
तैरने वाला समाज डूब रहा है

*

पुनर्पाठ में- रिंपी खिल्लन सिंह का आलेख
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लोक चेतना
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-

1
दीपक दुबे का व्यंग्य
फाइलों में अटका भोलाराम का जीव
*

महेश परिमल का ललित निबंध-
रिश्ते कभी बोझ नहीं होते

*

जयप्रकाश मानस के कविता संग्रह
'अबोले के विरुद्ध' से परिचय
*

पुनर्पाठ में- प्रमिला कटरपंच
से जानें लोकपर्व साँझी का विषय में

*

समकालीन कहानियों में यू.के. से
उषा राजे सक्सेना की कहानी- इंटरनेट डेटिंग

उस दिन स्काइप पर सौम्या, ममी-पापा से उनके विवाह की पचीसवी वर्षगाँठ लंदन में मनाने की योजना पर बातचीत कर रही थी कि ममी ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘सौम्या, अब तू प्रोफेशनल हो गई है साथ ही रीयल स्टेट रैशब्रुक ऐंड सन्स में फिफ्टी परसेन्ट की पार्टनर है। मकान, कार, भारी बैंक-बैलेन्स सबकुछ है तेरे पास। अब अपनी शादी की सीरियसली सोच! तू इतने लोगो से मिलती-जुलती है। कोई तो तुझे पसंद होगा ही!’
‘हाँ बेटा बता, हमारी तरफ से तुझे पूरी छूट है। लड़का तेरे जोड़ का हो और तेरी पसंद का हो, तुझे वह खुश रखे बस्स। जात-बिरादरी, रंग-नस्ल वगैरह की हमें कोई चिंता नहीं है। तुझे पढ़ाते-लिखाते, तेरा कैरियर बनाते-बनाते, हम लोग जात-बिरादरी और देश-काल की संकीर्णताओं से मुक्त हो चुके हैं। और फिर एक ही तो बेटी है मेरी। तेरी खुशी में हमारी खुशी है।’
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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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