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124.  8.  2006 

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पिछले सप्ताह
1
हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का
जनतंत्र

°

संस्मरण में
अनूप शुक्ल व शोभा स्वप्निल की रचना
पार्षद और झंडा गीत

°

सामयिकी में
कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख
क्रांतिकारी घटना का साक्षी
वह बरगद

°

फिल्म–इल्म में
अजय ब्रह्मात्मज की पड़ताल
हिंदी
फिल्मों में राष्ट्रीय भावना

°

कहानियों में
भारत से अलका पाठक की कहानी
फोकस

जब सारे मुल्क पर आज़ादी का पचासवां साल मियादी बुखार–सा लगा हो, ऐन उसी मौके पर ज्ञान बाबू की आंखें मैदान में लगी मूर्ति पर जा डटीं। ठीक पहाड़ के बीच, नदी-घाटी-झरने के संयोग वाले चाय के खोखे पर गरमागरम चाय सुड़कते हुए। जो मूर्ति वहां वर्षों से थी, बस ज्ञान बाबू ने तभी देखी थी। मूर्ति के बारे में कबूतर और कौओं की तरह चाय वाला छोकरा बहादुर भी अनजान था। ज्ञान बाबू ठहरे मीडिया के आदमी, गिद्ध से भी तेज़ निगाह के मालिक हैं। चाय का कुल्हड़ बहुत दूर फेंक मारा। दूर की कौड़ी जो हाथ लगी थी। कैमरा, वीड़ियो के ताम-झाम के संग उसी पहाड़ी गांव में घुस गए।
°

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इस सप्ताह
1
कहानियों में
भारत से दीपक शर्मा की कहानी
गुलाबी हाथी

"देखिए" स्त्री–स्वर ने कहा, "अभी दो दिन पहले की बात है। घड़ी में ऐसे ही बारह बज कर तेरह मिनट हो रहे थे जब इसी हावड़ा मेल में एक हादसा हुआ था।"
"कैसा हादसा?" मैं कांपने लगा।
धामपुर से एक दंपति हावड़ा मेल में सवार हुए थे, पंद्रह और सत्रह नंबर वाले . . .
"वे दोनों बर्थ उस दिन खाली गए थे," मैं मुकर गया, मेरे पास रिकार्ड है, पूरा रिकार्ड – "आप याद करिए। पुरूष के पास एक रिवाल्वर था और लेडी सवारी के हाथ का बटुआ सुनहरा था सोने की तरह चमकीला . . ."
"कतई नहीं," मैं फिर मुकर लिया।
"मैं नहीं मानती," स्त्री–स्वर ने परिचिता  की आकृति धारण कर ली . . .

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हास्य व्यंग्य में
गुरमीत बेदी ने पता लगाया कि
बंदरों ने किताबें क्यों फाड़ी!

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साहित्य समाचार में
जापान से विशेष रपट

टोक्यो में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन

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चिठ्ठापत्री में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
जुलाई माह के चिठ्ठों पर

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श्रद्धांजलि में
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से परिचय और
एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार

 सप्ताह का विचार
जैसे जलता हुआ एक सूखा पेड़ पूरा वन जला देता है, वैसे ही एक कुपुत्र पूरा कुल नष्ट कर देता है।—चाणक्य

 

नचिकेता, प्रियव्रत चौधरी, राजेन्द्र चौधरी, सजीवन मयंक और भूपेंद्र कुमार दवे की नयी रचनाएं 

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
मुंबई टु सतपुड़ा–पुष्यमित्र
तुम सच कहती हो–अभिरंजन कुमार
चाह–डॉ शैलजा सक्सेना
रक्तदान–नितिन उपाध्ये
ज़िंदगी जहां शुरू होती है–रवींद्र बत्रा
फुटबॉल–पद्मा सचदेव
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हास्य व्यंग्य में
राजनीति और मूंछ–राजेन्द्र त्यागी
धूप का चश्मा–संतोष खरे
इटली के लड्डू–गुरमीत बेदी
भगौने में चम्मच–प्रतिभा सक्सेना
°

पर्व परिचय में
9 अगस्त रक्षाबंधन के अवसर पर
मनोहर पुरी की कलम से बंधा
प्यारा सा बंधन–रक्षाबंधन
°

घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी के सुझाव
दमदार रहें दिनभर के लिए
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रसोईघर में
माइक्रोवेव अवन में पकाएं
आलू टमाटर हरे प्याज वाल
°

महानगर की कहानियों में
सुभाष नीरव की लघुकथा
मकड़ी
°

पर्यटन में
मनीष कुमार के साथ चलें
सिक्किम के सफ़र पर
°

फुलवारी में
 देश देशांतर में जानकारी की बातें
अर्जेन्टीना, ब्राज़ील और पेरू

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© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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