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अनुभूति

1.12. 2005 

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
गुरमीत बेदी का व्यंग्य
सावधान बंदर सीख रहे हैं हमारी भाषा

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव ने खोजा
माउस में छिपा कलाकार

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप का नया लेख
हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और नोबेल प्राइज़

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आज सिरहाने
अभिव्यक्ति में प्रकाशित बारह कहानियों का नेपाली अनुवाद
'ज़िन्दग़ी एक फ़ोटोफ्रेम'

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कहानियों में
भारत से संजय विद्रोही की कहानी

बहाने से

हल्के पीले रंग के पर्दे से ढकी यहां एक खिड़की भी है। जिससे आसमान साफ़ दिखाई देता है और धरती धुंधली। यही वह खिड़की है जिससे छनकर आ रही रोशनी आपको सड़क पर से देखने पर जुगनू जैसी जान पड़ी थी। अरे! ये क्या? किसी की तस्वीरोें के टुकडे पड़े हैं ज़मीन पर। किसकी तस्वीरें हैं? शायद किसी लड़के की। या शायद किसी लड़की की। नहीं‚ एक लड़का और एक लड़की की हैं। फाड़ी किसने? शायद लड़के ने, या शायद लड़की ने। देखो‚ उधर लैंपशेड के पास रखी ऐश­ट्रे पर एक बुझी हुई आधी सिगरेट भी रखी है। लगता है कोई मर्द था यहां। हां, लेकिन क्या लड़कियां सिगरेट नहीं पी सकती? या इस बेडरूम में एक मर्द की कल्पना करना ज़्यादा रोमांचक होगा?
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इस सप्ताह

कहानियों में
यू के से उषा वर्मा की कहानी

रिश्ते

फ़ोन उठा कर हेलो कहा, दो चार वाक्य के बाद ही उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उन्होंने फ़ोन पटक कर रख दिया और ऐनी से बोले, "सुन लिया अपने बेटे के बारे में, अब वह कभी भी इस घर में नहीं आ सकता। उस पापी की यही सज़ा है, एड्स पॉज़िटिव ब्लड–टेस्ट। मैं उसकी शकल भी नहीं देखना चाहता। इस घर में कोई भी उस नीच से नहीं मिलेगा।" कर्नल साहब के शब्दकोष में आदेश ही आदेश थे। कहीं समझौता नहीं, रौबदाब की दुनियां के मालिक कर्नल साहब ने अपना फ़ैसला सुना दिया। स्कॉटलैंड के रहले वाले कर्नल साहब के दिल में जमी हुई बर्फ़ बसंत ऋतु में भी नहीं पिघलती थी। उनका वजूद कर्तव्य की दुनियां में खर–पतवार की तरह फैल कर सब कुछ शुष्क बना गया था।

°

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
शोषण के विरूद्ध

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साहित्यिक निबंध में
पद्मप्रिया का शोधपूर्ण आलेख
अनूदित साहित्य एवं पठनीयता

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फुलवारी में
शिल्पकोना में बनाएं लिफाफे से
हिरन हथपुतली
साथ ही देश देशांतर में जाने
आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड
के बारे में

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पर्व परिचय में
राजेन्द्र तिवारी का आलेख
सिरमौर की बूढ़ी दिवाली
°

सप्ताह का विचार
जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया
को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी
वाणी को आश्रय देता है।
रवींद्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में

इस माह की कवि– जया नर्गिस
दिनेश चैमोला के दोहे, राजेन्द्र वर्मा के गीत, संजीव गौतम की ग़ज़लें और
हाइकु महोत्सव

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
मणिया–अमृता प्रीतम
दूसरी दुनिया–निर्मल वर्मा
उसकी दीवाली–पूर्णिमा वर्मन
समुद्र में रेगिस्तान–सुधा अरोड़ा 
विसर्जन–शैल अग्रवाल
विश्वास–नवनीत मिश्र

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हास्य व्यंग्य में
थैंक्यू सॉरी और हाई बाई–रेखा व्यास
दीपक से साक्षात्कार–अनूप कुमार शुक्ल
शूर्पनखा की नाक–गोपाल प्रसाद व्यास
कैसे कैसे शब्दजाल–रविशंकर श्रीवास्तव
वह कहां है–नरेन्द्र कोहली

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टिकट संग्रह में
राजेश कुमार सिंह का आलेख
डाक टिकटों में बाल दिवस

°
पर्व परिचय में
राजेन्द्र तिवारी का आलेख
हिमांचल का रेणुका जी मेला

°
साहित्य संगम में अमृता प्रीतम की एक और कहानी एक जीवी रत्नी एक सपना
संस्मरण में उजबेक लेखिका 
जुल्फिया
का हृदयस्पर्शी रेखाचित्र
इमरोज़ के विषय में 
अमृता की ज़बानी छोटा सच बड़ा सच
इमरोज़ की कलम से अमृता प्रीतम की यादें मुझे फिर मिलेगी अमृता
°
श्रद्धांजलि में
राजेन्द्र तिवारी ने संकलित किए है
निर्मल वर्मा से संबंधित भावभीने संस्मरण
शिमला में घुला निर्मल
गौरव गाथा में निर्मल वर्मा की एक और प्रसिद्ध कहानी माया दर्पण
नगरनामा में निर्मल वर्मा की हार्वर्ड डायरी सीढ़ियों पर सिगरेट
°
उपन्यास अंश में
यू एस ए से सुषम बेदी के धारावाहिक
 उपन्यास अंश लौटना का भाग–6
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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
बच्चे ने मिलाया नंबर, दादा दादी अंदर

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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